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Friday, September 23, 2011

'Shri Radhe Maa' ki Leelaye - Antara Jassu




परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी |


नाम अंतरा जस्सू
उम्र इक्कीस वर्ष
निवासी चारकोप | 

 जून २०११ को उसने जोगेश्वरी वेस्ट स्थित एच. के. खान कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में बी. फार्मा. का अंतिम पेपर दिया | अपने कॉलेज में अच्छे पढने वाले बच्चों में उसका नाम बेस्ट ऑफ़ टेन में गिना जाता था |
अंतरा जस्सू  ने बी. फार्मा. कम्प्लीट करने के लिये रात दिन डट कर मेहनत की थी | बी फार्मा के बाद उसने  एम. फार्मा करने के लिये US जाने की दो साल पहेले ही ठान ली थी | अपनी पढाई के साथ उसने अमेरिकन युनिवर्सिटी में दाखले हेतु दो साल पहले से तैयारी शुरू दी थी | इस बाबत वह इन्टरनेट पर और कई  कंनसलटन्सी में जानकारी हासिल करती रही | 


अमेरिका में पढाई के लिये कुछ Exams पास करने थे, जिनमे जी आर ई और टॉप टेन जैसे कुछ अत्यंत कठिन exam भी देने होते है | अंतरा जस्सू को चूंकि अपने भविष्य के सपने को साकार करना था, सो उसने अपने मरसक प्रयास जारी रखे और  जी आर ई मे अछे  अंको की प्राप्ति हुई |  टॉप टेन भी बढ़िया रहा | जैसे ही उसने बी - फार्मा से फुरसत पाई, वह अन्य प्रयास मे जुट गई | उसने अमेरिका स्थित अलग - अलग युनिवर्सिटी के प्रवेश फार्म भरने शुरू किये | एक एक कॉलेज का फार्म भरने के लिये हजारो रुपयों की जरुरत होती थी | इसके लिये उसने बोरीवली स्थित एक  कंनसलटन्सी की मदद ली जिसके लिये उसे अच्छी खासी रक्कम अदा करनी पड़ी | अलग अलग फार्म भरने, उन्हें अपने डाक्युमेंटस कुरिएर से भेजने तथा उनके बार यहां वहां से डाक्युमेंटस इकटे करने उन्हें xerox करवाने आदि के लिये भी भरपूर रक्कम खर्च करनी पड़ी | 



जून और आधे जुलाई महीने की भरपूर मेहनत के बाद अब अंतरा जस्सू इस इंतजार मे बैचेन थी कि उसे अमेरिका के किस एरिया की किस  युनिवर्सिटी मे से सेक्सन लैटर आयेगा | रात दिन  की इन्टरनेट चेकिंग और भारी इंतजार के बाद आखिर उसे एक, न्यूयार्क की लोंग - आयलेंड युनिवेर्सिटी से सेक्सन लैटर आ ही गया |
अंतरा जस्सू  के मुरझाये चहेरे पर एकाएक  चमक दिखाई देने लगी | लोंग आईलैंड 
युनिवर्सिटी
न्यूयार्क  की एक हाई - फाई और बहुत विशाल प्राचीन  युनिवर्सिटी हैं | उसकी औपचारिकता पूरी करने मे पंद्रह दिन और ढेर सारे अमेरिकन डालर खर्च हुए | लेकिन खैर | अंतरा जस्सू का एडमिशन लैटर मे लिखी दो साल के तमाम खर्चों को देखकर अंतरा  जस्सू के परिवार मे चिंता के बदल छा गये | 

हकीकत मे अंतरा जस्सू के अभिभावक एक साधारण इनकम से अपना परिवार चला रहे थे | घर मे चर्चा  शुरू हुई की रकम का क्या होगा | फिर एजुकेशन लोन के लिये प्रयास चालू हो गया | एक बैंक से दुसरे बैंक मे भागते - दौड़ते थकना शुरू हो गई लेकिन, एजुकेशन लोन देने वाले बैंक मे बैठे अधिकारी लोगो की खाम खा की खज्जल खारी से अंतरा जस्सू का परिवार परेशान और हताश होने लगा | उधर एक सितम्बर मे कॉलेज शुरू हो रहे थे और इधर बैंक वाले कभी कल आओ तो कभी परसों आओ की गोली देकर समय बर्बाद कर रहे थे | यह जुलाई का अंतिम सप्ताह था | सिर्फ एक महीने का समय बाकी था | और अभी तक लोन का कुछ नहीं बना था जबकि एक बहुत बड़ी समस्या का सामना होना तो अभी बाकी था |

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अमेरिकन  एम्बेसी से वीजा लेना कोई आसन काम नहीं था | उसके लिये ढेर सारे कागजात चाहिये  थे |
माह जुलाई की अंतिम तारीख | अंतरा जस्सू परेशान हालत में अपने परिवार के साथ 'श्री राधे मा भवन' में शनिवार की रात 'श्री राधे शक्ति मा' की शरण में पहूँच गई | 'राधे मा' की गुफा में अंतरा जस्सू ने देवी माँ की तरफ झांका तो उसकी आखों में आसू जैसे अभी टपक जाने वाले थे | 'श्री राधे शक्तिमाँ' ने भरपूर दया की दृष्टी उस पर डाली | अपने दाहिने हाथ में पकड़ा त्रिशूल उन्होंने हौले से अंतरा जस्सू के सिर से छु दिया | ऐसे लगा जैसे अंतरा जस्सू के दिन फिर गये |


उसके बाद एकाएक  घटनाक्रम तेजी से घुमने लगा | अगले दिन रविवार की सुबह लौट आईलैंड यूनिवर्सिटी से एक बड़ा सा कुरिएर लिफाफा आयाइस लिफाफे में आई - ट्वेंटी था | यानी की वीजा लगने के लिये जरुरी पत्र | श्याम को
एक बैंक के अधिकारी का फोन आया जिसने सोमवार को बैंक में बुलाया था | अपने तमाम कागजात और आय- ट्वेंटी लेकर अंतरा जस्सू सोमवार यानी अगस्त की पहली सप्ताह में बैंक अधिकारी से मिली
बुधवार को अंतरा जस्सू को बैंक से एक पत्र मिला जिसमे उसे बताया गया कि उसका बैंक लोन स्वीकृत किया जा चूका है | बुधवार को ही उसने एच. डी. सी बैंक से वीजा एम्प्लाई क़ी फ़ीस भरी | गुरवार को उसने ऑनलाइन वीजा फार्म  भरकर 'इन्टरव्हिऊ डेट' ली | अगली शुक्रवार को अंतरा जस्सू अमेरिकन  एम्बेसी में वीजा इन्टरव्हिऊ के लिये उपस्थित थी

अंतरा जस्सू 'इन्टरव्हिऊ के समय इतनी नर्वस थी क़ि उसके हाथ बुरी तरह काप रहे थे और वह अपनी फाइल भी बड़ी मुशकिल से संभला पा रही थी | उसके मन में उनके सवाल उमर-मिट रहे थे | लेकिन अंतरा जस्सू को जैसे एका एक आभास हुआ क़ि उसके सिर को श्री राधे शक्ति माँ' वह त्रिशूल अभी भी छु रहा है | देवी माँ क़ी कृपा | अंतरा जस्सू को वीजा मिलने में तीन मिनिट का वक्त भी नहीं लगा | एम्बैसी से बहार आते लगा जैसे अंतरा जस्सू हवा में उड़ रही थी

दुसरे दिन बैंक अधिकारी ने सूचित किया कि वह तीन दिन बाद कभी भी लोन का चेक ले सकती है

आप सभी माता के भक्तो को अंतरा जस्सू क़ी यह कहनी इसलिये सुना रहा हु क्योंकि में उसके परिवार का एक सदस्य है | 'श्री राधे शक्ति माँ' क़ी कृपा से सिर्फ पंद्रह दिन में कितनेसिर्फ पंद्रह दिन में युनिवर्सिटी से आई - ट्वेंटी  का लैटर आना, दस दस दिन में लोन पास होकर मिल जाना बारह दिन वीजा लगजाना  और अगले पंद्रह दिन शनिवार क़ी चौकी में जब अंतरा जस्सू देवी माँ के चरणों में गई तो यह बताने के लिये कि वह 19 अगस्त क़ी रात क़ी फलाईट पकड़ कर न्यूयार्क जा रही है | आपके आशीर्वाद से

भक्तोजनो | अंतरा जस्सू 21 अगस्त को न्यूयार्क पहुँच गई अपनी एम्. फार्मा क़ी पढाई कम्प्लीट करने के लिये

अंतरा जस्सू का सन्देश :  जैसे श्री राधे शक्ति माँ  ने सिर्फ पंद्रह दिन में मेरे तमाम कार्य सिद्ध किये आप सभी के भी सभी सपने साकार हो | शर्त लेकिन यह है क़ि आपका विश्वास अटूट हो, आपकी आस्था प्रबल हो और आपकी भावना शुद्ध हो | जय श्री राधे शक्ति माँ |

(निरंतर)

Note - 
Dear all, thanks for your overwhelming response, we will be sharing your experience with all the devotees of 'Shri Radhe Maa' very soon. 

If you also wish to share your experience with all the devotees of 'Devi Maa' you can email us on sanjeev@globaladvertisers.in, we will get it published.

प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |


आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in

Monday, September 5, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 19






परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


एकाएक मुझे जोरों से भूक सताने लगी | हालाकी मैं सीधे तीन माला पर जाकर भंडारा ले सकता था, परन्तु मैंने निश्चित किया की पहले ‘श्री राधे शक्ति माँ' के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लूँगा, फिर भंडारे से प्रशाद ग्रहण करूँगा |


मैं फर्स्ट फ्लोर पे स्थित वेटिंग हॉल से निकल कर सीढियों की तरफ बढा | वहा मौजूद दर्शनों की कतार में खड़े भक्तों ने जोर से जयकारा लगाया | मैंने ऊपर जाने के लिए जैसे ही सीढ़ी के तरफ कदम बढ़ाये, लाल ड्रेस पहने एक महिला सेवादार ने हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में कहा, “जय माता दी, भगत जी ! कृपया लाइन से आइये |"


लाइन में खड़े एक दर्शनार्थी ने तनिक आगे सरक कर मेरे लिए जगह बनाई | मैं स्वयं को लाइन में अड़जस्ट किया | हलाकि मेरे पीछे खड़े आढे से व्यक्ति के चेहरे पर कडवाहट के भाव प्रकट हुए मगर मैंने जैसे ही क्षमा -याचना की दृष्टि से उनकी तरफ देखा | उसने मेरा कन्धा थपथपाकर ‘जाने दो’ जैसी अदा से हाथ झटका |


“आप कहाँ से आये है, मालिक ?” मैंने आगे खड़े सज्जन से पुछा |



राजौरी गार्डेन …” उसने मेरी तरफ गर्दन घुमाई .. “दिल्ली से … और आप ?”


“मैं यही से हूँ ….” मैंने हसकर कहा , “आप कब आये दिल्ली से?”


“आज ही आया हूँ …” वह व्यस्त स्वर में बोले, “और सुबह जल्दी के फलाइट से वापिस जाना है ! ‘देवी माँ ’ के दर्शन करना ही मेरा ख़ास काम है, जिसके लिए आया हूँ |”


“आप का नाम जान सकता हूँ ?” मैंने सहज भाव से पुछा|


“ राजीव बंसल !” उसने एक सीढ़ी ऊपर चढ़ते हुए कहा, “ ठेकेदारी करता हूँ ! सच पूछोगे तो मैं आज जो भी हूँ, ‘देवी माँ’ के बदोलत ही हूँ |”


मैं भी एक सीढ़ी आगे बढ़ा |


“आज से दस साल पहले मैं कुछ भी नहीं था | माँ-बाप ने शादी कर दी | एक कपडे की दुकान पर सिर्फ तेरहसौ (1300) महीने के नौकरी करता था | घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता था | ऊपर से किराये के मकान में रहते थे | मकान क्या? एक कमरा कह लो, उसी में किचन , बाथरूम और बेडरूम | मेरे माँ -बाप पलंग पर सोते थे , हम निचे गद्दा बिछाते थे | तंगी और आभाव से  घिरे जैसे तैसे जिंदगी घिसट रहे थे | फिर मुझे एक बंदा दिल्ली में स्थित ‘राधे माँ ’के भवन में ले गया | मैंने वहा ‘देवी माँ ’ से अपनी कंगालीसे छुटकारा पाने की गुहार की | तीन –चार महीने तक मैं लगातार ‘श्री राधे माँ’ भवन जाता रहा |”


राजीव बंसल भावुक हो उठा |

“मेरा किराये का रूम बहुत ही खस्ता हाल में था ? पोलिस्टर टूट टूट कर गिर रहा था | फर्श में जगह जगह गद्दे थे | मैंने मकान मालिक से मुरममत करवाने  के लिए बारबार मिन्नत की | एक रात मैं ‘देवी माँ ’ भवन में जाकर रोने लगा | मैंने ‘देवी माँ ’ से एक ही प्रार्थना की, माँ मुझे रास्ता दिखाओ, सुबह उठा तो मकान मालिक आया | उसने कहा की उसके पास टाइम नहीं है, मैं स्वयं ही रूम की मरममत करवा लूं , जो खर्चा आयेगा मकान मालिक मुझे दे देगा | यही टर्निंग पॉइंट था | ‘देवी माँ’ ने मेरी प्रार्थना काबुल की | मैंने दुकान से तीन दिन की छुट्टी ली | घर रेपैरिंग का मटेरिअल इकखटा किया और मिस्त्री बुलाकर ले आया | लेबरकी जगह मैं खुद  ही काम कर रहा था | मैंने इस प्रकार मजदूरी की दिहाड़ी बचने की भी सोची | मैंने बड़ी तबियत से रूम की टूट -फुट ठीक की | मेरे पडोसी ने जब काम देखा तो बोला, ‘यार , मेरे रूम की भी मुरामत करनी है| मैंने मटेरिअल , मिस्त्री की दिहाड़ी आदि का बजेट बनाया और फिर  अपनी बचत जोड़कर उसे बजेट दिया | वह मान गया | उसके बाद गल्ली में पांच - सात मकानों की मरमत का काम मिला | मेरे काम की तारीफ़ होने लगी . मैंने कपडे की दुकान वाली नौकरी छोड़ दी | मैं नियमित रूप  से दिल्ली वाले ‘राधे माँ ’ भवन में जाकर हाजरी लगाता था | ‘देवी माँ ’ की आसिम –आपर कृपा दृष्टि हुई | मैंने ठेकेदार बन गया | पहले मरममत का काम मिलता था | अब अन्य मकान और कोठी निर्माण का काम भी मिलने लगा | मैं पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' का बार - बार धन्यवाद करता हूँ | उनकी मेहेरबानी हुई | आज दिल्ली  में जगह जगह प्रोजेक्ट्स चल रहे है | कभी इस साईट पर तो कभी उस साईट पर भागना पड़ता है | लेकिन फिर भी …..” राजीव बंसल ने , “फिर भी ” पर जोर दिया | “फिर भी यहाँ नियमित रूप से माँ की हाजरी में आता हूँ | कितना भी बीसी शेडुअल क्यूँ न हो, दोपहर की फलाइट पकड़ता हूँ | यहाँ आता हूँ , ‘देवी  माँ ’ के दर्शन प्राप्त करता हूँ, और सुबह की जल्दी वाली फलाइट से वापिस दिल्ली लौट जाता हूँ | ‘देवी माँ ’ का आभारी हूँ | भाईसाहब , सब कुछ मिल गया है | अब तो एक ही तम्मना है , टूटे चाहे सारा जग टूटे , ‘देवी माँ ’ का द्वार न टूटे ”


राजीव बंसल एकदम विभोर भाव से ताली बजाकर ‘श्री राधे माँ ’ का  नाम जप रहा था | उसके धीमे धीमे गाने की आवाज़ मेरे कानो में मिश्री घोल रही थी |


एक –दो करके हमारी कतार निरंतर सिधिया चढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी |हम दूसरी मंजिल पहुंचे …|

(निरंतर )





 


Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |


आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in

Wednesday, August 31, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 18


परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


'श्री राधे माँ भवन' के फर्स्ट फ्लोर स्थित विशाल वेटिंग हॉल में श्री मनमोहन गुप्ता जी के संग आया था | उन्होंने लड़के को मेरे लिये कॉफ़ी लाने का इशारा किया और स्वयं पसर हल्की  झपकी लेने लगे | तभी दुबई से हिम्मत भाई एअरपोर्ट से सीधे यहाँ चले आये थे | कॉफ़ी पिने के दौरान उन्होंने अपनी आप- बीती सुनाई | अपने बचपन के लंगोटिया यार और बिजनेस पार्टनर के दगा  करने के बावजूद कैसे वे 'देवी माँ' की कृपा से अपने मुकाम पर पहुंचे | वाकई प्रेरणादायक प्रसंग था | 

"चलो .................." हिम्मत भाई ने तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा, " मैं 'देवी माँ' की हाजरी लगाने जा रहा हूँ| उसके बाद भंडारा लूँगा | बहुत भूख लगी है ! तुम चल रहे हो ??"

"आप चलो हिम्मत भाई..............'  मैंने अंगड़ाई लेने का उपक्रम किया,' में थोडा ठहेरकर ...............'

हिम्मत भाई ने दरवाजे के पास पहुँच कर अभिवादन करते हुए हाथ हिलाया | तभी एक महिला ने वेटिंग हॉल में प्रवेश किया | हिम्मत भाई ने तनिक पीछे हटकर उन्हें रास्ता दिया और फिर स्वयं दरवाजे से बाहर निकल   गये | 

अभी अभी हॉल  में प्रविष्ट हुई महिला की गोद में लगभग तीन -साढ़े तीन साल की बच्ची थी,  जो शायद सोने के लिये कसगसा रही थी और वह महिला उसे हौले हौले थपथपा रही थी |

श्री मनमोहन गुप्ता एकाएक उठे | हथेली  के पिछले भाग से मुह पोछा और फिर खेद भरी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा | मैंने उन्हें सो जाने का इशारा किया | उन्होंने इन्कार में सर हिलाते हुए निचे चल रही 'माता की चौकी' में जाने की इच्छा जतलाते हुए  एक हाथ पाजामे की जेब में ढूसा और दरवाजे से निकल गये |

आगंतुक महिला ने सोफे में बच्ची को लिटाया और स्वयं  पास बैठे गई | उसे थपथपाते हुए मेरी तरफ देख कर बोली, " जय माता दी | "
"जय माता दी | "  मैंने बच्ची पर एक निगाह डाली, " बहुत प्यारी बच्ची है | "

" देवी माँ ने दी है |"  वह पूर्ववत थपथापते हुए श्रद्धा भरे स्वर में बोली," हमने इसका नाम भी राधिका रखा है | वो क्या है ना,  दरअसल  इसका सोने का टाइम हो गया है | बच्ची है ना ! नींद तो आयेगी ही |"
मैंने सिर हिलाया |


" आपने दर्शन किये..............." उसने भवे हिलाकर पूछा | "मैंने अभी दर्शन के लिये ही जा रही थी वो क्या है ना इसी बच्ची को आशीर्वाद दिलवाना था | भाई साब ! बड़ी मिन्नत करके, बहुत मांग-मांग कर मैंने देवी माँ से कन्या ली है |  मेरी ससुराल वाले तो बहुत चिल्लाते थे कि क्या सारा दिन बिटिया बिटिया की रट लगाये रहती हो | पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ी रही | यह मेरी पहली संतान है | वो क्या है ना, हर कोई पहली संतान के रुप में बेटा ही मांगता है | मैंने हमेशा से यही  इच्छा रखी कि मेरे यहाँ पहली बेटी ही हो | क्यू भाई साहब ? बेटियों में क्या बुराई है |"

"बेटिया ही नहीं होगी.............."मै अपना ज्ञान बधारने लगा, " तो माँ  कहा से होगी | बहिन कहा से होगी | बीवी कहा से होगी | मामी कहा से होगी | बेटी ही तो सृष्टि का आधार है | "

"वो क्या है ना ..............."  महिला का स्वर उत्साह से भर गया, "लोग बेटा बेटा कर के अपने बेटो को सर चढ़ा लेते है और फिर वही बेटे अपने माँ बाप की दुर्गति करते देखे गये है | कन्याए तो बेचारी सदा अपने ससुराल में भी माँ बाप की खैर मांगती रहती है | अब 'देवी माँ' को ही देख लो | वो भी तो किसी की बेटी है ही ना | कैसे लाखो लोगोका कल्याण कर रही है | ना कुछ चढावा मांगती है | ना कुछ और मांगती है | बस हमेशा देती ही रहती है | "

मैंने सहमति में सर हिलाया|


"वो क्या है न भाई साहब...?" महिला ने स्वर थोडा धीमा किया, " हर किसी को मुह माँगा तो मिलता नहीं है न | मुकद्दर भी तो आखिर कोई चीज़ है | अपनी मुकद्दर में लिखा है स्कूटर और आप होंडा- सिटी के लिए शिकायत करे की 'देवी माँ' स्कूटर क्यों दिया, होंडा सिटी क्यों नहीं दी?? यह कोई बात हुई? ज़रा यह भी तो सोचो कुछ लोगो के पास तो स्कूटर क्या सायकल तक भी नहीं है| फिर? 'देवी माँ' से शिकायक क्यों? देखो भाई साहब ! वो क्या है न, एक  स्कूल में  किसी क्लास में 80 बच्चे है | उन  80 बच्चो में से एक बच्चा फर्स्ट क्लास ला रहा है | 95 % ला रहा है | और उसी क्लास में एक बच्चा फ़ैल हो गया है |  तो क्या कहोगे ? टीचर  ने कुछ गड़बड़ किया | अगर टीचर ने गड़बड़ किया है तो एक बच्चा फर्स्ट क्लास क्यों आया?  वो क्या है न भाई साहब, काबिलियत भी तो कुछ होती है | टीचर के पढ़ने में मीन मेख मत निकालो, अपनी मेहनत , अपनी लगन को भी देखो | 'देवी माँ क्या दे रही है और उसको इतना दे रही है, मेरे को कम  क्यों दे रही है - यह मत देखो | यह देखो की श्री  राधे  शक्ति माँ' के दरबार  से कुछ मिल  तो रहा है | खाली तो नहीं जा रहा ना | क्या में ठीक कह रही हूँ?"

मैंने सहमति में सर हिलाया |


तभी एकाएक बच्ची उठकर बैठ गयी |
महिला ने इशारे से बच्ची को सो जाने को पुछा | बच्ची ने इन्कार में दाए बाए सर हिलाया |

"दर्शन के लिए चले? " महिला ने स्नेहिल भाव में पुछा | 

बच्ची ने दोनों बहे उठाकर माँ की तरफ देखा |

महिला ने बच्ची को गोद में उठाया, मेरी तरफ देखकर अत्यंत धीमे स्वर में "जय माता दी" कहा और तेज कदमो से चलती हुई दरवाजे से
बाहर निकल गयी |

(निरंतर ....)




Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |


आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in
 

Thursday, August 25, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 17

 
परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


मनमोहन गुप्ता बात करते करते थोडा और पसर गये | थकान के कारण उनकी झपकी लग गई लगती थी |

एक लड़का कॉकी का कप दे गया |

तभी वेटिंग हॉल मे एक व्यक्ति प्रविष्ट हुआ जिसके हाथ मे बड़ा सा ट्रवेलिंग बैग था | बैग पर लगे स्टीकर चुगली कर रहे थे की वह किसी फ्लाइट से आया था | उसने एक साइड मे बैग को रखा | उंध से रहे मनमोहन गुप्ता के पाव छुने का उपक्रम करने के बाद मेरी बगल मे बैठते हुए उन्होंने कॉफ़ी देकर लौट रहे को इशारे से बुलाया | '" बेटा ....." आगुन्तक सज्जन ने बड़े थके से स्वर में  कहा ' एक कप चाय मुझे  भी मिलेगी क्या ? "

"चाय नही कॉफ़ी है ....|" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया "वह भी बिना शक्कर की | यही ले लो |"

"अरे .... " उन्होंने अपनत्व से मेरा हाथ पीछे ठेला "आप पियो | बेटा | मुझे भी कॉफ़ी ला दो ! और सुनो ! उनकी कॉफ़ी की बची हुई शक्कर मेरी कॉफ़ी मे डाल देना | मे तेज शक्कर पीता हु भाई ! "

लड़का गेट से बाहर निकल गया | आगंतुक ने जेब से रुमाल कर चेहरा पोछा |

"कही बाहर से ....... " मैंने यूँही बात शुरू की, "सीधे सही चले आ रहे हो |"

"हां |"  वह सोफे की पीठ पर सर टिकते हुए थके स्वर में बोला, "दुबई से आ रहा हूँ | एक तो फ्लाइट लेट, ऊपर से मुंबई का ट्राफिक ........तौबा! तौबा!"


मैंने सहानभूति भरे भाव से सिर हिलाया | निचे हॉल मे कोई नया भजन गायक पुरे जोश के साथ अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था | उसके गाने की धीमी धीमी आवाज अच्छी लग रही थी |

"मेरा नाम हिम्मत भाई  हैं |",  वह सज्जन मेरी तरफ देखते हूए बोले, "आपका परिचय ?"

"मेरा नाम भगत हैं ....." मै कॉफ़ी का घुट भरने के बाद तसल्ली के साथ सिर हिलाकर बोला, "देवी माँ  के दर्शनो के लिये आया हूँ|"

"मै भी देवी माँ  के दर्शन के लिये सीधा दुबई से चला आ रहा हूँ ........." हिम्मत भाई ने मेरी आँखों  में झाँका " 'देवी माँ' की अपार कृपा हुई जो मै आज फिर से खड़ा हो गया हूँ  भगत जी, वरना एक बार तो मै सड़क  पर ही आ गया था |"

लड़का कॉफ़ी दे गया | हिम्मत भाई  ने कृतज्ञ भाव से लड़के को धन्यवाद दिया और फिर कॉफ़ी का एक बड़ा सा 'घूंट' भरा |

"मेरा पालघर में स्टील के बर्तन बनाने का कारखाना हैं ............' हिम्मत भाई स्वयं ही बोलने लगे,' बहुत बड़ा बिजिनेस था मेरा | मैं एक्सपोर्ट का भी धंदा करता हूँ  | दुबई...बर्लिन...शारजाह में मेरे स्टील के बर्तन बहुत एक्सपोर्ट होते थे | मेरे एक बचपन का पडोसी और साथ पढ़ा एक दोस्त 'नवीन अरोड़ा' जो मेरा बहुत करीबी था .... अक्सर मुझसे धंदे में साथ रखने के लिये रिक्वेस्ट किया करता था | मैंने दोस्ती का लिहाज करते हूए दुबई में अपना एक ऑफिस खोलकर उसे वहा का इंचार्ज बना दिया | वह और उसका परिवार तो जैसे  मेरे पाव धोकर पिने को राजी थे | दुबई में पहेले साल नवीन अरोड़ा ने काफी मेहनत की और पहेले साल से दुगुने आर्डर भिजवाये | मैंने प्रोडक्शन बढ़नी शुरू  की | मै यहा रात दिन बिजी हो गया और नवीन अरोड़ा वहा पर | मै लगातार माल भेजता जा रहा था | उधर नवीन अरोड़ा खूब मेहनत कर रहा था ....."

हिम्मत भाई  ने एक घुट में पूरी कॉफ़ी खत्म की और कप रख दिया |

"मै प्रोडक्शन के लिये उधार में  रॉ मटेरिअल उठाता रहा, माल भेजता रहा " हिम्मत भाई  का स्वर एकदम कडवा होने लगा, "लेकिन मै बेवफुफ़ की औलाद, पुरे तीन साल तक इस बात से लापरवाह रहा की वहा से पेमेंट की कोई चर्चा तक नहीं की! और उसने भी नहीं की ! मेरी गुडविल के कारण रॉ मटेरिअल उधारी पर देने वाले डीलरो ने जब पेमेंट के तकाजे शुरू किये तो मैंने नविन अरोड़ा को पेमेंट भेजने को कहा ! "

 हिम्मत भाई कुछ क्षण खाली कप को घूरते रहे एकाएक मेरी तरफ देखने के बाद वह गंभीर स्वर में बोले  " दुबई से नविन अरोड़ा ने हा भाई आज भेजता हूं, कल भेजता हूं से कुछ दिन निकाले! और फिर एकाएक उसने फोन उठाना बन्द कर दिया !

में अवाक मुंह बाये उसकी तरफ तक रहा था !

" नवीन अरोड़ा ने मेरा फोन लेना बंद कर दिया.........' हिम्मत भाई एक एक शब्द चबाते हूए बोले, " बल्कि मेरे से हर प्रकार का संपर्क ही बंद कर दिया | मैंने दो महीने तक बहुत कोशिश किया | उधर लेनेदरो के तकजो ने  मेरा जीना
  हराम कर दिया | फैक्ट्री में लेबर तन्खवाह मांग रहे थे | बिजली का बिल इतना बढ गया था की आज कनेक्शन कटा कि कल कटा | मतलब ये भगत जी में पैसे पैसे का मोहताज हो गया | और उधर नवीन अरोड़ा ने साल में मुझे सैतीस करोड़ का चुना लगा दिया | कितने का .................?"

'सैतीस  करोड़ ड ड ड ड ड  ' मेरे मुह से बोल नही फुट रहे थे |

"सैतीस करोड ! " हिम्मत भाई  ने दो - तींन बार सिर हिलाया, "उसने अपने परिवार को दुबई में बुला लिया | अपना अलग से ऑफिस खोल लिया | और में सड़क पर आ गया |"

उसकी आँखे भर आई |

'मेरा बंगाल गिरवी | मेरी फ़क्टरी गिरवी | गाड़ी ऑफिस सब बिक गई | परिवार में मेरे हालत यहा थी कि हम रोटी को मोहताज हो गये | भगत जी ! मैं पागलों जैसी स्थिति में पंहुच गया था | न नहाने कि सुद्ध न खाने का होश | कभी कबार शोकिया एकाध पैग लगाने वाला में हिम्मत भाई अब बेवडा हिम्मत भाई  के नाम से मशहूर हो गया | मेरे सभी पार दोस्त - सगेवाले मुझसे से बात तक करने से कतराने लगे | लोग मुझे देखेते ही दूर भागते कि उधार ना मांग ले | अकेला बैठा अपने आप से बाते करता था | लोग समझने लगे हिम्मत भाई का दिमाग सटक गया है | यहा हालत गई थी मेरी और मेरे परिवार की | मेरी घरवाली जो बिना गाड़ी के चलती नही थी,   नौकर चाकरो की लाइन लगती थी घर में...............मगर अब मेरी घरवाली टिफिन बनाकर लोगो के घरो में पहुचाती थी और परिवार का गुजरा चला रही थी |

मै सहानुभति भरे भाव से उसे तक रहा था "तभी किसी ने मेरा उद्दार करवाया|" हिम्मत भाई का स्वर कोमल होने लगा, "मुझे इधर -उधर भटकने से बचाने के लिये वह 'देवी माँ'  के दर्शन के लिये ले आया | सच पूछो तो मै टाइम - पास भाव से यहा चला आया | लाइन में लगा | रुटीन में दर्शन किये भंडारा लिया और वापिस चला | मगर मेरे मन के किसी कोने में से एक आवाज आई कि हिम्मत भाई.......तेरी दुर्गति दूर होगी तो यही होगी | भगत जी | दुसरे दिन सन्डे था | मै  सुबह - सुबह 'श्री राधे माँ' भवन के सामने  फुटपाथ पर बैठे गया और मन ही मन प्रार्थना करने लगा | मुझे नही मालूम,  मै क्या प्रार्थना कर रहा था | मगर कर रहा था | अब मेरा रुटीन बन गया | मै यूही टहलते हूये आता,  राधे माँ  जी के  बाहर लगे होर्डिंग को प्रणाम करता और काफी देर तक फूटपाथ  पर ही बैठा रहता |"

हिम्मत भाई की आप बीती सुनते सुनते मै द्रवित हो उठा था |


"फिर क्या हुआ?" मैंने व्यग्र स्वर में पूछा |

"चमत्कार !"  हिम्मत भाई ने हाथ झटका, "उसी फूटपाथ पर मेरा एक पुराना व्यापारी मिल गया | एक वक्त था जब वह मुझसे थोडा -थोडा माल उधार लिया करता था | उसने मुझे पहचाना | मुझे गले से लिपटा लिया | मालूम पड़ा कि वह आज बहुत बड़ा बिजनेस मैन बन गया | था | उसने मेरी कहानी सूनी | हौसला दिया | मुझे बिना इंटरेस्ट  के रक्कम देकर फिर से फैक्टरी शुरु करने को हिम्मत दी | भगत जी, पूज्य 'राधे शक्ति मा' की अनुकम्पा से मेरी गाड़ी फिर पटरी पर आ गई | मेरा व्यापार फिर संभाला | मेरी दारू वारू सब छुट गई | मै नियमित रूप से यहा 'देवी माँ'  के दर्शन को आने लगा | मेरा बंगला जो गिरवी पड़ा था, उसे छुड़ाया | फैक्टरी भी गिरवी पड़ी थी,  उसे छुड़ाया | मैंने फिर से दुबई में ऑफिस खोला | मेरा बिजनेस धीरे धीरे उसी पोजीशन में लौट आया है जैसे आजसे सात साल पहले था | मै दुबई से  फ्लाइट पकड़ कर पहले यहा आया हू | पहले देवी माँ की दया दृष्टी पाउँगा, फिर भंडारा लेकर घर जाऊंगा |"

मैंने सहज स्वर में पुछा , "और.............उस नवीन अरोड़ा ............तुम्हारे पार्टनर ...............उसका क्या हुआ?"

हिम्मत भाई ने छत की तरफ देखते हूए कहा," देवी माँ उसे सदबुद्धि  दे !"

(निरंतर.............)

Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |

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Sanjeev Gupta
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