Thursday, August 25, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 17

 
परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


मनमोहन गुप्ता बात करते करते थोडा और पसर गये | थकान के कारण उनकी झपकी लग गई लगती थी |

एक लड़का कॉकी का कप दे गया |

तभी वेटिंग हॉल मे एक व्यक्ति प्रविष्ट हुआ जिसके हाथ मे बड़ा सा ट्रवेलिंग बैग था | बैग पर लगे स्टीकर चुगली कर रहे थे की वह किसी फ्लाइट से आया था | उसने एक साइड मे बैग को रखा | उंध से रहे मनमोहन गुप्ता के पाव छुने का उपक्रम करने के बाद मेरी बगल मे बैठते हुए उन्होंने कॉफ़ी देकर लौट रहे को इशारे से बुलाया | '" बेटा ....." आगुन्तक सज्जन ने बड़े थके से स्वर में  कहा ' एक कप चाय मुझे  भी मिलेगी क्या ? "

"चाय नही कॉफ़ी है ....|" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया "वह भी बिना शक्कर की | यही ले लो |"

"अरे .... " उन्होंने अपनत्व से मेरा हाथ पीछे ठेला "आप पियो | बेटा | मुझे भी कॉफ़ी ला दो ! और सुनो ! उनकी कॉफ़ी की बची हुई शक्कर मेरी कॉफ़ी मे डाल देना | मे तेज शक्कर पीता हु भाई ! "

लड़का गेट से बाहर निकल गया | आगंतुक ने जेब से रुमाल कर चेहरा पोछा |

"कही बाहर से ....... " मैंने यूँही बात शुरू की, "सीधे सही चले आ रहे हो |"

"हां |"  वह सोफे की पीठ पर सर टिकते हुए थके स्वर में बोला, "दुबई से आ रहा हूँ | एक तो फ्लाइट लेट, ऊपर से मुंबई का ट्राफिक ........तौबा! तौबा!"


मैंने सहानभूति भरे भाव से सिर हिलाया | निचे हॉल मे कोई नया भजन गायक पुरे जोश के साथ अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था | उसके गाने की धीमी धीमी आवाज अच्छी लग रही थी |

"मेरा नाम हिम्मत भाई  हैं |",  वह सज्जन मेरी तरफ देखते हूए बोले, "आपका परिचय ?"

"मेरा नाम भगत हैं ....." मै कॉफ़ी का घुट भरने के बाद तसल्ली के साथ सिर हिलाकर बोला, "देवी माँ  के दर्शनो के लिये आया हूँ|"

"मै भी देवी माँ  के दर्शन के लिये सीधा दुबई से चला आ रहा हूँ ........." हिम्मत भाई ने मेरी आँखों  में झाँका " 'देवी माँ' की अपार कृपा हुई जो मै आज फिर से खड़ा हो गया हूँ  भगत जी, वरना एक बार तो मै सड़क  पर ही आ गया था |"

लड़का कॉफ़ी दे गया | हिम्मत भाई  ने कृतज्ञ भाव से लड़के को धन्यवाद दिया और फिर कॉफ़ी का एक बड़ा सा 'घूंट' भरा |

"मेरा पालघर में स्टील के बर्तन बनाने का कारखाना हैं ............' हिम्मत भाई स्वयं ही बोलने लगे,' बहुत बड़ा बिजिनेस था मेरा | मैं एक्सपोर्ट का भी धंदा करता हूँ  | दुबई...बर्लिन...शारजाह में मेरे स्टील के बर्तन बहुत एक्सपोर्ट होते थे | मेरे एक बचपन का पडोसी और साथ पढ़ा एक दोस्त 'नवीन अरोड़ा' जो मेरा बहुत करीबी था .... अक्सर मुझसे धंदे में साथ रखने के लिये रिक्वेस्ट किया करता था | मैंने दोस्ती का लिहाज करते हूए दुबई में अपना एक ऑफिस खोलकर उसे वहा का इंचार्ज बना दिया | वह और उसका परिवार तो जैसे  मेरे पाव धोकर पिने को राजी थे | दुबई में पहेले साल नवीन अरोड़ा ने काफी मेहनत की और पहेले साल से दुगुने आर्डर भिजवाये | मैंने प्रोडक्शन बढ़नी शुरू  की | मै यहा रात दिन बिजी हो गया और नवीन अरोड़ा वहा पर | मै लगातार माल भेजता जा रहा था | उधर नवीन अरोड़ा खूब मेहनत कर रहा था ....."

हिम्मत भाई  ने एक घुट में पूरी कॉफ़ी खत्म की और कप रख दिया |

"मै प्रोडक्शन के लिये उधार में  रॉ मटेरिअल उठाता रहा, माल भेजता रहा " हिम्मत भाई  का स्वर एकदम कडवा होने लगा, "लेकिन मै बेवफुफ़ की औलाद, पुरे तीन साल तक इस बात से लापरवाह रहा की वहा से पेमेंट की कोई चर्चा तक नहीं की! और उसने भी नहीं की ! मेरी गुडविल के कारण रॉ मटेरिअल उधारी पर देने वाले डीलरो ने जब पेमेंट के तकाजे शुरू किये तो मैंने नविन अरोड़ा को पेमेंट भेजने को कहा ! "

 हिम्मत भाई कुछ क्षण खाली कप को घूरते रहे एकाएक मेरी तरफ देखने के बाद वह गंभीर स्वर में बोले  " दुबई से नविन अरोड़ा ने हा भाई आज भेजता हूं, कल भेजता हूं से कुछ दिन निकाले! और फिर एकाएक उसने फोन उठाना बन्द कर दिया !

में अवाक मुंह बाये उसकी तरफ तक रहा था !

" नवीन अरोड़ा ने मेरा फोन लेना बंद कर दिया.........' हिम्मत भाई एक एक शब्द चबाते हूए बोले, " बल्कि मेरे से हर प्रकार का संपर्क ही बंद कर दिया | मैंने दो महीने तक बहुत कोशिश किया | उधर लेनेदरो के तकजो ने  मेरा जीना
  हराम कर दिया | फैक्ट्री में लेबर तन्खवाह मांग रहे थे | बिजली का बिल इतना बढ गया था की आज कनेक्शन कटा कि कल कटा | मतलब ये भगत जी में पैसे पैसे का मोहताज हो गया | और उधर नवीन अरोड़ा ने साल में मुझे सैतीस करोड़ का चुना लगा दिया | कितने का .................?"

'सैतीस  करोड़ ड ड ड ड ड  ' मेरे मुह से बोल नही फुट रहे थे |

"सैतीस करोड ! " हिम्मत भाई  ने दो - तींन बार सिर हिलाया, "उसने अपने परिवार को दुबई में बुला लिया | अपना अलग से ऑफिस खोल लिया | और में सड़क पर आ गया |"

उसकी आँखे भर आई |

'मेरा बंगाल गिरवी | मेरी फ़क्टरी गिरवी | गाड़ी ऑफिस सब बिक गई | परिवार में मेरे हालत यहा थी कि हम रोटी को मोहताज हो गये | भगत जी ! मैं पागलों जैसी स्थिति में पंहुच गया था | न नहाने कि सुद्ध न खाने का होश | कभी कबार शोकिया एकाध पैग लगाने वाला में हिम्मत भाई अब बेवडा हिम्मत भाई  के नाम से मशहूर हो गया | मेरे सभी पार दोस्त - सगेवाले मुझसे से बात तक करने से कतराने लगे | लोग मुझे देखेते ही दूर भागते कि उधार ना मांग ले | अकेला बैठा अपने आप से बाते करता था | लोग समझने लगे हिम्मत भाई का दिमाग सटक गया है | यहा हालत गई थी मेरी और मेरे परिवार की | मेरी घरवाली जो बिना गाड़ी के चलती नही थी,   नौकर चाकरो की लाइन लगती थी घर में...............मगर अब मेरी घरवाली टिफिन बनाकर लोगो के घरो में पहुचाती थी और परिवार का गुजरा चला रही थी |

मै सहानुभति भरे भाव से उसे तक रहा था "तभी किसी ने मेरा उद्दार करवाया|" हिम्मत भाई का स्वर कोमल होने लगा, "मुझे इधर -उधर भटकने से बचाने के लिये वह 'देवी माँ'  के दर्शन के लिये ले आया | सच पूछो तो मै टाइम - पास भाव से यहा चला आया | लाइन में लगा | रुटीन में दर्शन किये भंडारा लिया और वापिस चला | मगर मेरे मन के किसी कोने में से एक आवाज आई कि हिम्मत भाई.......तेरी दुर्गति दूर होगी तो यही होगी | भगत जी | दुसरे दिन सन्डे था | मै  सुबह - सुबह 'श्री राधे माँ' भवन के सामने  फुटपाथ पर बैठे गया और मन ही मन प्रार्थना करने लगा | मुझे नही मालूम,  मै क्या प्रार्थना कर रहा था | मगर कर रहा था | अब मेरा रुटीन बन गया | मै यूही टहलते हूये आता,  राधे माँ  जी के  बाहर लगे होर्डिंग को प्रणाम करता और काफी देर तक फूटपाथ  पर ही बैठा रहता |"

हिम्मत भाई की आप बीती सुनते सुनते मै द्रवित हो उठा था |


"फिर क्या हुआ?" मैंने व्यग्र स्वर में पूछा |

"चमत्कार !"  हिम्मत भाई ने हाथ झटका, "उसी फूटपाथ पर मेरा एक पुराना व्यापारी मिल गया | एक वक्त था जब वह मुझसे थोडा -थोडा माल उधार लिया करता था | उसने मुझे पहचाना | मुझे गले से लिपटा लिया | मालूम पड़ा कि वह आज बहुत बड़ा बिजनेस मैन बन गया | था | उसने मेरी कहानी सूनी | हौसला दिया | मुझे बिना इंटरेस्ट  के रक्कम देकर फिर से फैक्टरी शुरु करने को हिम्मत दी | भगत जी, पूज्य 'राधे शक्ति मा' की अनुकम्पा से मेरी गाड़ी फिर पटरी पर आ गई | मेरा व्यापार फिर संभाला | मेरी दारू वारू सब छुट गई | मै नियमित रूप से यहा 'देवी माँ'  के दर्शन को आने लगा | मेरा बंगला जो गिरवी पड़ा था, उसे छुड़ाया | फैक्टरी भी गिरवी पड़ी थी,  उसे छुड़ाया | मैंने फिर से दुबई में ऑफिस खोला | मेरा बिजनेस धीरे धीरे उसी पोजीशन में लौट आया है जैसे आजसे सात साल पहले था | मै दुबई से  फ्लाइट पकड़ कर पहले यहा आया हू | पहले देवी माँ की दया दृष्टी पाउँगा, फिर भंडारा लेकर घर जाऊंगा |"

मैंने सहज स्वर में पुछा , "और.............उस नवीन अरोड़ा ............तुम्हारे पार्टनर ...............उसका क्या हुआ?"

हिम्मत भाई ने छत की तरफ देखते हूए कहा," देवी माँ उसे सदबुद्धि  दे !"

(निरंतर.............)

Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |

आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में 
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in

Monday, August 22, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 16



तभी सीढ़ीया चढ़ते हुये 'मनमोहन गुप्ता' दिखाई दिये ! सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने, तनिक भारी भरकम शरीर और सर पर सफ़ेद चकाचक गांधी टोपी |

मुझे देखकर उनके चेहेरे पर हैरानी  के भाव उमरे, "अरे ! तुम अभी तक इधर ही बैठे हो| कमर में दर्द होने लगा जायेगा ! क्या समझे  ? चलो मेरे साथ |"


में उनके पीछे पीछे सीढिया  चढते हुए फर्स्ट फ्लोर वोटिंग हॉल में प्रविष्ठ हुआ |

एक बड़े से सिनेमा हाल जितने ऊँचे और भव्य सजावट से सज्जित वेटिंग हॉल  में लगभग बीस आदमी बैठने लायक आरामदायक सोफा लगाये गये थे | सामने एक सिनेमा हॉल जैसी बड़ी व्हाइट स्क्रीन लगी थी | जिसके आगे एक बड़ा सा LCD टीवी  सेट भी था | एक तरफ परम श्रद्धेय 'श्री राधे शक्ति माँ' की भव्य फोटो सुसज्जित थी | छत पर विशाल गोलाकार सीनरी थी जिसमे नीले रंग में तारो जैसी  कुछ चमक आसमान में रात्रि  का भ्रम पैदा कर रही थी |

"बैठो....? " मनमोहन गुप्ता एक सोफा में लगभग पसर से गये,' बैठो , भाई !"

मै तनिक संकुचते  हुए उनसे थोडा फासला बनाते हुए हौले से बैठ गया | एक लड़का फ़ौरन पानी लेकर हाजिर हुआ | मैंने तुरंत पानी का गिलास लिया | में काफी देर से इसकी आवशकता महसुस कर रहा था |

"क्या पिओगे ? ' मनमोहन गुप्ता ने अलसाये स्वर में पूछा,"चाय ? कॉफ़ी ?"

"कॉफ़ी"  मैंने पानी पीकर खाली गिलास लड़के की तरफ बढाया, " बिना शक्कर की!"

उन्होंने लड़के की तरफ देखा | लड़के ने समज जाने वाली मुद्रा में सर हिलाया | और बाई तरफ स्थित दरवाजे से बाहर निकल गया |

मनमोहन गुप्ता ने मेरी तरफ देखा और हौले से मुस्कराये, "कविताओ में रूचि है तुम्हारी?"

'हाँ", मैंने सिर हिलाया |

"मैंने बहुत सी कविताए लिखी हैं..............." वो तनिक गंभीर स्वर में बोले|

'अनेक कवी सम्मेलनो  में शिरकत कर चूका हूँ | मेरे कविताओ के संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं !"

मैंने प्रसंशा और हैरानी  भरे निश्चित भाव से उनकी तरफ ताका |

"अब मेरी नई कविता के कुछ अंश सुनाता हु ! सुनोगे ?"

"'शोर !"  मै फ़ौरन बोला,"क्यों  नहीं !"

मनमोहन गुप्ता ने कुछ क्षण छत्त की तरफ ताका और फिर विशिष्ट अंदाज में बोले,' माँ  जो  नही तो कुछ भी नही,  बस माँ  से घर होता है | "

'वाह !' मैंने  दो-तीन बार ढोढी को छाती की तरफ झुकाया ,' माँ  से घर होता है !"

"सच मनो बेटा |" मनमोहन गुप्ता का स्वर भारी हो उठा, "जब जब दर्शन वाला शनिवार आता है, हमारा पुरे परिवार में जैसे उत्साह उमंग और हर्ष का समंदर लहराने लगता है | देवी माँ  के चरण जब से हमारे घर में पड़े हैं, हम तो धन्य हो गये है | हमारा पूरा परिवार अपने आपको भाग्यशाली समजता है देवी माँ जी की अनंत कृपा हम पर दिन रात बरसती रहती है ! हर पल हर घडी जैसे त्यौहार का सा माहौल बना रहता है ! रोजाना दूर दराज से अनेक माँ के दर्शन के पुजारी आते ही रहते हैं ! घर आये अतिथियों  की सेवा में घर के नौकर चाकर से लेकर सभी सदस्य बिड से जाते है | बाहर से आनेवाली संगत के आलावा भी यहा के बहुत से परिवार देवी माँ  के विशेष दर्शन को आते रहते हैं,  हर वक्त मेला सा लगा रहता हैं ! बहुत अच्छा लगता हैं |"

मैंने सिर हिलाया |

'कई बार -----' मनमोहन गुप्ता सामने घूरते हूए बोले , " देवी  माँ  जी बाहर चले जाते है ! अभी कुछ दिन पहेले दो महीने के लिये पंजाब गये थे, उससे पहेले London - Switzerland  आदि  को स्थानों पर अपने भक्तो को आशीर्वाद देने गये थे | जब देवी माँ यहाँ नही होते, तो यूँ  लगता है जैसे सारा संसार सुना सुना है | हलाकि घर में परिवार के सभी सदस्य होते है | नौकर, सेवादार, चौकीदार, वॉचमन, रोसाईये ------ वैसे के वैसे ही पुरे के पुरे - मगर ------"

उन्होंने एकदम खाये से स्वर में कहा 'मगर लगता है घर सुनसान है | कोई रोनक नही | कोई चहल-पहल नही | सभी लोग एक मशीन की तरह अपनी अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे होते हैं | सच पूछो तो दिल लगता ही नही | एक रुखी रुखी बैचनी जैसे हर वक्त घेरे  रहती है ! कोई धंदा सूझता ही नही | कुछ करने को ही नही | न खाने में मन लगता है न कही जाने पर ! और तो और सोना भी ठीक ढंग से नही होता ! समझ सकोगे मेरे फिलिंग को?"

में क्या बोलता ?

"इसलिये............."मनमोहन गुप्ता ने सर को तनिक नचाते हूए कहा, "मेरी नई कविता का शीर्षक है ...............माँ  से घर बनता है ! '

"बहुत सुन्दर |" मैंने ताली बजाने का उपक्रम किया,' अब समझ में आता है भाई साहब | जब ह्रदय में कोई उथल पुथल होती है तो नई कविता का सृजन होता है | क्या बात कही है | माँ  से घर बनता है |"
"माँ  जो  नही तो कुछ भी नही ....................

उन्होने हाथ अंदाज से लहराया, "माँ  जो   नही .............."

"माँ  जो  नही तो कुछ भी नही,
सूना सूना सब कुछ लगता,
इक खालीपन सा हर वक्त ही
उदास मन से उफनता है .......
माँ से घर बनता है |"


(निरंतर ...)

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Friday, August 19, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 15


Part 15
उसकी उम्र लगभग 55 साल होगी, कद थोडा ठिगना, चेहरा गोल, छोटे छोटे बाल | उसने हलके आसमानी कलर की हाफ बाजु की शर्ट और पेंट पहनी थी | 'देवी माँ' की दर्शनो  के लिए सीधीयों  में कतार के बीच वह खड़ा फर्श को घुर रहा था | मेरा ध्यान उसकी तरफ आकर्षित इसलिए हुआ क्योंकी वह अपने आप से बाते कर रहा था | कभी वह झुंझलाकर गर्दन हिलाने लगता, तो कभी एकदम मुस्कराने लगता, कभी गुस्से में दात भींच रहा था,  तो  कभी गंभीर मुद्रा में कुछ बड़बड़ाने लगता |

लगातार अपनी तरफ टकटकी लगाये देखता पाकर उसने झेपते से हुए दोनों जोड़कर धीरे से कहा "जय माता दी"|

"जय माता दी, साहेब|"  मैंने हँसा,  "आज कुछ खास उठापटक चल रही आपके भीतर ही भीतर | क्यों?"

"व़ो... यूँही..."  वहा झेपे मिटाने का प्रयास करते हुए जबरन  मुस्कुराया,  "और तुम सुनाओ | बैठ क्यूँ  गए ? थक गए हो ! अभी से ? जवान हूँ प्यारे ! उठो ! हिम्मत करो|"

"अरे नहीं भैई!" अपने पास पड़ी खाली जगह को थपथपाया,  "आप भी बैठो!  दर्शन शुरू नहीं हुए हैं शायद ! लाइन ज्यों की त्यों खड़ी हैं |"

वह, 'थैंक्यू'  बोलने वाले स्टाइल में होंटों को हिलाकर मेरी बगल में आहिस्ता से बैठे गया |

"क्या बाते कर रहे थे अपने आपसे?"  मैंने सहज स्वर मैं पुछा, "पहले अपना नाम बताइए |"

"मधुकर.... मधुकर नायर | मैं एक बैंक कर्मर्चारी था |.... हूँ |"

"था ?"  मैंने उसकी बात दोहराई "और हूँ !  इसका क्या मतलब हुआ?"

"मतलब तो देवी माँ जाने |" वहा भरे गले से बोला, "लेकिन मानना पड़ेगा | पूज्य राधे शक्ति माँ का नाम हैं बड़ा चमत्कारी |"

" जरा खुल कर बोलिए नायर साहब" मैंने उत्सुकता से पुछा, "आपने क्या चमत्कार देखा?

"मेरे दोस्त |" वहा एकाएक गंभीर हो उठा,  "मैंने पुरे तेतीस साल बैंक में नौकरी की हैं | कितने? 33 इयर | मामूली क्लर्क की पदवी पर लगा था | अपनी मेहनत से, लगन से,  ईमानदारी से काम करते - करते असिस्टंट ब्रांच मेनेजर  की सीट पर पंहुचा | लोग मेरी ईमानदारी की मिसाले देते.......... मेरी मेहनत और कार्यक्षमता पर पुरे स्टाफ को नाज था और फिर.........."

एक गहरी साँस लेने के बाद मधुकर नायर बोला, "मेरी अच्छी खासी जिंदगी को ग्रहण लग गया | किसी कर्मचारी ने बैंक में सत्ताएस लाख का घपला किया और इल्जाम मेरे सर पर आ गया...|  कितने का सताइएस लाख का|"

मैंने गंभीर मुद्रा में लगातार ध्यान से उसकी बात सुन रहा था |

"पहले सभी कर्मचारी से पूछताछ हुई | फिर इन्क्य्वारी चालू हो गयी |मुझे सस्पेंड कर दिया गया |

"यहाँ कब की बात हैं ? "  मैंने सहानभूति भरे स्वर में पुछा |

"लगभग सात वर्ष और पाच महीने हो गये,  मुझे  संस्पेंड हुए |" मधुकर नायर ने मेरी आँखों में झाँका, "मुझ  पर बेईमानी  का इल्जाम लगा | लोग मुझे  अजीब निगाहों से देखने लगे मेरे रुतबा,  मेरे इज्ज़त की धज्जिया उड़ गयी | शहर में कही आना जाना तक मुश्किल हो गया | यार दोस्तों ने पीठ दिखाई | रिश्तेदार सगेवाले मेरी बाते बनाने लगे | ... मतलब यह हैं मित्र मेरे,  मैं ज़माने भर मैं तमाशा बन गया | मेरी  हालत विक्षितों की सी  हो गई | खाना पीना हराम | ऊपर से मेरे ऊपर केस हो गया|  हप्ते महीने कोर्ट कचहरी का चक्कर |  वकीलों की फ़ीस | सब कुछ बंटाधार हो गया |"

मैंने उसकी हाथ को थपथपाकर धाडस  बंधाया |\

"मैं थक गया था | मैंने टूट गया था |  मेरा विश्वास,  मेरा धैर्य भी जवाब देने लगा था  |" मधुकर नायर ने भरे गले से कहा, "फिर, मैं एकबार यहाँ 'श्री राधे माँ' भवन मैं हो रही चौकी में आ गया | जब वक्ता लोगों ने 'श्री राधे शक्ति माँ'  की गुणगान बरवान किया, तो मैं भी दर्शन को चला गया | मैंने 'देवी माँ' के दरबार में अर्जी लगाइ,  फिर निरंतर सात चौकी भरी |"

"फिर...?" मैंने व्यग्र स्वर मैं पुछा |

"फिर... सातवी चौकी  के बाद ....." मधुकर नायर की आवाज में जोश आ गया, " एकाएक जैसे देवी माँ ने चमत्कार किया |  बैंक मैं की गई जालसाजी के असली गुनहगार पकड़ में आ गये | वे तीन जन थे | एक क्लर्क,  एक काशियर  और एक ग्राहक |  तीनो की शिनाख्त हो गयी | उन्होंने गुनाह कबुल कर लिया | अभी परसों .....परसों मैंने बैंक कर्मर्चारी था,  लेकिन कल मुझे फिर से अपनी सर्विस की बहाली का आर्डर मिल गया | मुझे अपने नौकरी पर फिर बुला लिया गया हैं |  बैंक ने लिखित रूप से मुझसे माफी मांगी है| इसी दौरान मुझे असिस्टंट से ब्रांच मेनेजर भी बना दिया गया हैं | मेरे भाई! इसलिए मैंने कहा मैं  बैंक कर्मर्चारी था, हूँ | यानि सोमवार से... आज 'देवी माँ' के दर्शन करूँगा | आशीर्वाद लूँगा |  कल तान कर सोऊंगा और फिर सोमवार से मधुकर नायर, ब्रांच मेनेजर की सीट संभालेगा |  मैं तो इसे सिर्फ 'देवी माँ' का चमत्कार मानता हूँ |  आपका क्या कहना हैं ?"

मैंने मुठी बंद कर हवा में लहराई " हंड्रेड  परसेंट 'देवी माँ' का चमत्कार |"

मधुकर नायर ने संतुष्टि से सीर हिलाया |
(निरंतर ...)


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Wednesday, August 17, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 14




Part 14



आप कभी  परम श्रधेय 'श्री राधे शक्ति माँ' के, 'श्री राधे माँ भवन' गये हो, तो आपको बात दू मैं इस वक्त  सीढ़ीयो द्वारा उपरी मंजली की तरफ जाने वाले रस्ते में कोई आठ दस सीढियों के बाद,  लिफ्ट के ठीक लेफ्ट साइड में स्थित, विशाल विंडो की तनिक उमरी जगह पर,  उकड़ होकर बैठा हुआ था | यहाँ से ग्राउंड फ्लोर  स्तिथ विशाल हॉल में अच्छी तरह झाँका जा सकता हैं | पहली मंजिल की तरफ जाने वाली लगभग सात-आठ सीढियों पर खड़े माता के पूजारियो को भी देखा जा सकता हैं |

मेरे पास बैठे बुजुर्ग सेवादार ने उठते हुए मुझसे कहा "लाइन में लग जाओ, पांच माला स्थित गुफा तक पहुँचने में तुम्हे पूरा एक घंटा लग जायेगा | इससे  ज्यादा भी लग सकता हैं |"

"कोई बात नहीं प्रभु|"  मैंने बेफिकीर से हाथ हिलाया,  "अब जब आ ही गये हैं तो देवी माँ का आशीर्वाद लेकर ही जायेगे | एक घंटा बाद ही सही! दो घंटा बाद भी चलेगा|"

जैसे ही सेवादार उठा एक अन्य बुजुर्ग जिनकी उम्र सत्तर से ऊपर ही होगी, आहिस्ता  से मेरे बगल में बैठ गये | उनके हाथ में एक चॉकलेट का बड़ा सा डिब्बा था | मुझे डिब्बे की तरफ तकते देख कर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, " देवी माँ के लिए है | उन्हें चॉकलेट बहोत पसंद है |

"गुड" मैंने तनिक सरक कर उन्हें आराम से बैठने का इशारा किया |

"मैं जब भी आता हूँ........." वह आत्मविभोर स्वर में बोले, "देवी माँ के लिए चॉकलेट ही लाता हूँ | मैंने जब जब भी 'देवी माँ' के दर्शन किये,  मुझे वो एक छोटी सी कंजक  के रूप में दिखाई दी | मैं जैसे ही गुफा में प्रवेश करता हूँ  मुझे  ऐसा  लगता हैं,  जैसे वो मेरी ही प्रतीक्षा कर रही हो | एकदम बच्चो  जैसा मुस्कुराहट  उनके अधेरो पर खेलने लगते हैं | बच्चो जैसी ही उतावली मुद्रा में वो हाथ बढाकर मुझसे चॉकलेट मांगती हैं......................." उनका गला  भर आया |

एक क्षण रुकने के बाद वह पुलकित स्वर मैं बोले, "जैसे ही 'देवी माँ' चॉकलेट लेती हैं | मेरे मन में एक असीम आनंद भर उठाता हैं |"

मैंने उनकी आखों में छलक उठने को आतुर पानी देखा |

"मेरा नाम सत्य प्रकाश हैं| .......सत्यप्रकाश गर्ग ..." वह अपने आप में खोये से धीर धीरे बोल रहे थे | "घर में 'देवी माँ'  की कृपा से दिया सब कुछ हैं | मैं तो पंद्रह रोज का बेसब्री से इंतजार करता हूँ,  की कब 'देवी माँ' के दर्शनों का दिन आये | .........तुमने देवी माँ से कभी  कुछ माँगा ?"

मैंने इन्कार में सीर हिलाया |

"माँगना भी मत",  वह गंभीर मुद्रा बनाकर बोले, " देवी माँ  अंतर्यामी हैं | अच्छा बताओ तुमने 'देवी माँ' के किस रूप में दर्शन किये हैं?"

मैं कुछ बोलू उससे पहले ही वह स्वतः बोलने लगे, "पहले तो यहाँ जान लो की आखिर 'देवी माँ' क्या हैं? कोई संत? कोई अवतार? कोई ऋषि ज्ञानी?"

 मैंने अनिश्चित भाव से सीर हीलाया, " आखिर 'देवी माँ' हैं क्या?"  वह एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोले, "सुनो बेटा, 'देवी माँ' के बारे में अपनी कोई  भी राय निश्चित करने से पहले,  उनके बारेमें अच्छी तरह जानना जरुरी हैं| देश - विदेश में उनके लाखो अनुयायी हैं | अब यही देख लो | हजारो की संख्या में हाजिर लोगो को गौर से देखो | इनमे टी वि आर्टिस्ट है, वकील है, डॉक्टर है, बड़े बड़े उद्योगपति है, छोटे-छोटे हाथ ठेला लगाने वाले भक्त हैं | साधू समाज के लोग, सरकारी तंत्र के लोग, बड़े-बुड्ढे, बच्चे-जवान............. न जाने कहाँ कहाँ से आ रहे हैं| इनको किसी ने निमंत्रण भेजा हैं क्या?  या इनको फोर्स किया हैं,  की यह तुमने आना ही है?  नहीं ! नहीं ! कुछ तो है,  की इन सबके दिलो  में . 'देवी माँ' के दर्शनों की इतनी लालसा है, की भारी बारिश में भी लोगो का हुजूम  दर्शनों  के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा हैं | सुनो मेरे बच्चे ! यहा साहूकारी नहीं चलेगी | यहा पद और आहोदा नहीं चलेगा | यहा रुतबा  दिखाने  की जरूरत नहीं|"

वह एक क्षण के लिए रुके, जीभ फिराकर अपने होंटों को तनिक गिला करने के बाद वह बोले, "यहा अगर आना है,  तो दीन बनकर आओ | सवाली बन कर आओ | झुकना सिख कर आओ, विश्वास की ज्योत मन में जगाकर आओ | आशा की डोर थामकर आओ | कुछ पाने की इच्छा लिये आओ | मन की अशुधि और अहंकार को घर पर छोड़कर आओ | तब तुम्हे मालूम होगा की 'देवी माँ' किस बात पर रिझंती शक्ति है | याद रखना,  यहा भूलकर भी किन्तु के भाव लेकर मत आना टाइम ख़राब करोगे | अगर कोई अपने आपको धुरंदर समझे  और सोचे की मैं 'देवी माँ' की परीक्षा लू | तो यह उसकी भूल होगी | 'देवी माँ'  परीक्षा देती नहीं,  परीक्षा लेती है !"

(निरंतर...)

Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |

आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में 
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 13

Part 13

मैं अभी छोटी माँ और टल्ली बाबा यानि गौरव कुमारजी के बारे में सोच रहा था की दर्शन करने वाली संगत ऊपर की और बढ़नी शुरू हो गयी और वे दोनों महिलाये मोड़ मुड़ने के बाद दृष्टि से ओंज़ल हो गई |

 तभी डार्क- ग्रे कलर का सफ़र सूट पहने, सर पर लाल रुमाल बंधे, लगभग ६०-६२ वर्षीय एक सेवादार मेरी बगल में आकर उकड़ बैठ गया . उसने दोनों हाथो से अपनी पिंडलिया दबाने का उपरक करते हुए मेरे तरफ एक फीकी मुस्कान के साथ देखा |

"लगता है थक गए हो अंकल !" मैंने हाथ आगे बढ़ाये, "में पाँव दबा दू?"

"अरे नहीं यार !" उसने मेरी कालिया थमते हुए कहा, " में तो बस यूँ ही तुम्हे बैठे देख यहाँ आ गया .. दर्शन के लिए उपदर क्यों नहीं जा रहे हो?"

"वो क्या है ना अंकल!" मैंने ठोढ़ी खुजलाते हुए कहा, "थोड़ी भीड़ कम हो जाये तो खुले दर्शन करना चाहता हूँ | साथ में माता की चौकी का आनंद भी ले रहा हूँ | आप कब से सेवा कर रहे हो?"

"याद नहीं...." वह सोचने लगे, "शायद पांच साल से ... छह  भी हो गये होंगे|

"अंकल" मैंने उनके निकट सरकते हुए तनिक धीमे स्वर में पुछा, "मेरी कुछ पर्सनल समस्या है. दो 'माँ की भक्त' यहाँ आपस में छोटी माँ के बारे में चर्चा कर रही थी... आप थोडा विस्तार में  बता सकते है 'छोटी माँ' के बारे में?"
"देखो बेटे" वह आत्मीय स्वर में बोले, "निचे लगे किसी भी होअर्डिंग पर आपको टल्ली बाबा यानि गौरव कुमार का मोबाइल नंबर मिल जायेगा | तुम गौरव कुमार से मुलाकात का समय मांग लो. 'छोटी माँ' परम श्रधेय पूज्य राधे माँ का ही एक स्वरुप है | आपको यहाँ या तो सुबह 6 बहे तक या फिर शाम को 6 -7 बजे .. जो भी टाइम आपको मिले, आना  है | 'छोटी माँ' का आसन एक अलग कमरे में लगता है. वह सिवाय 'छोटी माँ' के दूसरा कोई भी नहीं होता | आप जो भी पूछना चाहे, वह बात आप 'छोटी माँ' से कहिये. खुल कर कहिये, तुम्हरे द्वारा कही बात या तुम्हारा परिचय अगर आप छाए तो एकदम गोपनीय रहेगा | यानि की आप की तकलीफ  को 'छोटी माँ' सुनेगी | गौर से सुनेगी | और तुम यकीं करो, काफी हाड तक तो 'छोटी माँ' ही तुम्हारी समस्या का निवारण कर देगी | उसके बाद भी तुम्हारे बार 'देवी माँ' तक पहुचेगी |"

"यह 'छोटी माँ' के वचन कब कब होते है?" मैंने जिज्ञासा भरे स्वर में पुछा |

"यह तो संगत पर निर्भर है... " वह कंधे  उचका कर बोला, "अगर संगत की संक्या अधिक रहती है तो हफ्ते में दो बार, नहीं तो एक बार तो निश्चित है ही |"

" .. 'छोटी माँ'.. कुछ प्रवचन या सत्संग करती है?" मैंने तनिक गर्दन को तिरछा किया |

" 'छोटी माँ' प्रत्येक आये हुए भक्त की बात सुनती है |"  वह थोडा तरंतुम भरे स्वर में बोला,  " देखो बच्चे | आज जिसे देखो, वह अंदर ही अंदर किसी न किसी बात से परेशां है | किसी की परेशानी बड़ी है तो किसी की छोटी | बेटा, चेहरे पर मत जाना | हर खिला हुआ, चमकता हुआ चेहरा दिखने में तो यूँ लगेगा की यार इस आदमी के जैसा सुखी और खुशहाल शायद कोई नह है | मगर अंदर के किसी कोने में कही न कही एक टीस, एक गम, एक निराशा उसे निरंतर कचोटती रहती है | बेटा ! एक बात और ज़िन्दगी में एक बात अपने दिमाग में कील की तरह गाडलो | अपने दुःख, अपनी तकलीफ, कभी अपने लगने वाले लोग, को मत बताना | अपने रिश्तोदारो सगेवाले, को तो हरगिज़ नहीं बताना |सुनो, ये दुनिया ऐसी है बेटा | तुम्हारा कोई कितना भी नजदीकी क्यों न हो, 70 % लोगो को आपकी तकलीफ से कुछ लेना देना नहीं होता | बाकि बजे 30 % आपकी तकलीफ सुनकर ऊपर से सहानभूति जताएंगे मगर भीतर ही भीतर पुलकित होंगे की ठीक हुआ, इसके साथ ऐसा ही होना चाहिए था |
में मंत्रमुग्ध उसका चेहरा तक रहा था |

"अपनी 'छोटी माँ' से कहो |" वह पुरजोर शब्दों में बोला, " ..'छोटी माँ'  न केवल आपकी तकलीफ को गौर से सुनेगी बल्कि उसके निवारण का रास्ता भी बतायेंगी | और फिर जब आपकी बात 'छोटी माँ' तक पहुँच गयी, समझो 'देवी माँ' तक पहुँच गयी |"

"फिर उसके बाद.............. "  मैंने उसकी आखों में झाँका |

"एक तारा बोले... " वह जोर से  हँसा, " फिर उसके बाद 'देवी माँ' जाने भाई | और जब 'देवी माँ' पर विश्वास है.. भरोसा है.. तो बाकि क्या रह गया ? मौजा ही मौजा |"

वह टल्ली बजने लगा |

(निरंतर .... )

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'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 12



Part 12


  "बहुत अच्छे !" मेरे कानो में एक महिला स्वर गूंजा |

मैंने हडबडा कर सर घुमाया |


तालिया बजाने का उपक्रम कर रही एक दर्शनार्थी महिला मेरे पीछे कड़ी शिव चाचा के विचार सुन कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थी |


मेरे एकाएक घुमने से वह भी मथोडा हडबडा कर पीछे सरकी ! दर्शानोके के लिए ऊपर जा रही थी संगतों की कतार में खड़ी एक अन्य महिला से वह टकराते बची |


उस महिला की उम्र लगभग 50  के करीब होगी हलके ग्रीन कलर का पंजाबी सूट पहने उस महिला के हाथ में एक थैली थी जिसमें से एक लाल चुनरी का थोडा सा हिस्सा बहार उभरा दिखाई दे रहा था | थैली में शायद कुछ और भी उपहार थे जो 'देवी माँ' को भेटे करने थे |


लाइन में पहले से खड़ी महिला ने थोडा सरक कर उस महिला को स्थान दिया,  जो शिव चाचा की बात कर रहे थी |


"बहुत उचित और जरुरु व्यवस्था हुई है |" थैली वाली महिला ने दो तीन बार दाए बाए सर हिलाया , "इसकी जरुरत भी थी |"


दूसरी महिला जो लगभग चालीस वर्ष की थी, तनिक दुबली पतली मगर अच्छे परिवार की सदस्य लग रही थी, उसने सहज भाव से पुछा, " आप कहा से आई है, बेहेन ?"


"घाटकोपर से ...."थैली वाली महिला बोली, "मेरे नाम अर्पिता मूलचंदानी है..| मैं हर दर्शनों के दिन आती हूँ |"

" मैं बांद्रा से आई हूँ !" दुबली पतली महिला ने अपना हाथ आगे बढाया, " मेरा नाम नीलिमा है | नीलिमा शर्मा|"
"नीलिमा ....." अर्पिता ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया, "आपको शिव चाचा द्वारा बताई व्यवस्था कैसी लगी ..."
"ठीक है ..." नीलिमा सपाट स्वर में बोली, " ये लोग यहाँ व्यवस्थापक है | जैसा करेंगे हम दर्शानार्थोने को वैसे ही करना पड़ेगा ना |"

"वो बात नहीं है..." अर्पिता ने सर झटका, " देखो! यह कार्ड के कलर द्वारा प्रत्येक शनिवार को दर्शन लाभ प्राप्त करने की व्यवस्था का मैं तो पुरजोर समर्थन करती हूँ | पूछो क्यों ? देखो मैं घाटकोपर से शाम ५-६ बजे के करीब चलकर यहाँ लगभग आठ - सादे आठ बजे पोहोचती हूँ  | कई बार नौ भी बज जाते है | लाइन में लगने के बाद मुझे लगभग 800 या या इससे उपार का नंबर मिलता है | आप मानेगी ? पिचली दफा मैंने रात को डेढ़ बजे दर्शन किये | फिर भंडारा लिया | घाटकोपर में वापिस घर पोहोचते पोहोचते मुझे सुबह के चार बज गए | इस व्यवस्था से में दर्शन जल्दी पा जाउंगी | लाइन में अधिक देर खड़े रहना नहीं पड़ेगा | ज्यादा गर्दी नहीं होने के कारन 'देवी माँ' के दर्शन भी आची तरह से होंगे | भाई मेरे को तो यह व्यवस्था एक दम ठीक लगी ... क्यूँ भैया?"

महिला ने मेरे तरफ आशाविंत निगाहों से देखा |

"मेरे ख्याल से... " मैंने अनुमोदन भरे स्वर में कहा, " इस व्यवस्था का सभी का समर्थन करना चाहिए |"

उसके चेहरे पर संतुष्ठी के भाव प्रगट हुए | अर्पिता ने होंठो ही होंठो में मुझे thank You और सीढियों के ऊपर की तरफ झाँका |

"अर्पिता जी ..." नीलिमा ने तनिक चिंतित स्वर में कहा, " मेरी कुछ घरेलु परेशानिया है, जिससे में 'देवी माँ' को अपने मुह से बताना चाहती हूँ | मगर मुश्किल ये है, गुफा में प्रवेश करने के बाद एक तो वह सांगत काफी बड़ी तादाद में होती है, ऊपर से सेवादार भी ज्यादा रुकने से मनाई करते है | "


"आप एक काम करे", अर्पिता ने भवे सिन्कोड़ी, "छोटी माँ से अपनी बात क्यूँ नहीं कहती?"


"छोटी माँ?" मैंने विचारपूर्वक निगाहों से उन दोनों की तरफ देखा | छोटी माँ कोन है? मैंने मन ही मन में प्रश्न किया |

"छोटी माँ कोन है?" यही सवाल प्रत्यक्ष रूप से नीलिमा ने तनिक व्यग्र स्वर में पुछा |


"छोटी माँ ............." अर्पिता ने हाथ हिलाते हुए कहा, "परम श्रधेय श्री देवी माँ का ही प्रतिरूप है "


"वो जो गुलाबी ड्रेस और गुलाबी चुनरी में देवी माँ की बाजु में खड़े रहती है ?" नीलिमा ने तनिक विचारपूर्वक स्वर में पुछा |


"Correct ! एकदम बरोबर पहचाना !" अर्पिता ने सहमति में सर हिलाया, "छोटी माँ को कही गयी बात समझो देवी को ही कही गयी है | देखो, बहेन | 'देवी माँ' मात्र दृष्टी मात्र से अपनी सांगत का कल्याण करती है | मगर फिर भी, आपकी कोई गंभी समस्या है .. आप किसी उलझन में है, किसी चिंता में घिरे है ... या मन का कोई बोझ आपकी ज़िन्दगी में तकलीफे घोल रहा है, तो पहले यूँ करे 'गौरव कुमार से समय ले..."


"यह 'गौरव कुमार' कं है?" नीलिमा ने पुछा |


अर्पिता ने एक हाथ ऊपर उठाकर मंदिर में घंटी बजने जैसा उपक्रम करते हुए तनिक मुस्कुराकर कहा, "टल्ली बाबा जी|"

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 11





Part 11





परम  श्रधेय  पूज्य  श्री  राधे  शक्ति  माँ  को  हाज़िर  नाज़ीर  मान  कर , जो  कहूँगा  – सच  के  सिवा  कुछ  नहीं  कहूँगा  – सरल  कवी 


गायक  सरदूल  सिकंदर  ने  जोरदार  जयकारा  लगवाया , “जयकारा  मेरी  गुडिया  जैसी  प्यारी  ‘राधे  माँजी ’ दा….”


“बोल  सांचे  दरबार  की  जय !” हॉल  में  मौजूद  संगत ने  छत  हिला  देने  वाले  बुलंद  स्वर  में  उत्तर  दिया |


सरदूल  सिकंदर  ने  अपना  गायन  समाप्त   कर  बैठे ने  के  लिए  निचे  ताका. मंच  संचालक  ने  माइक  लेकर  कुछ  कहना   चाह , तभी  शिव  चाचा  मंच  संचालक  के  निकट  पहुंचे |  मंच  संचालक ने  उनका  इशारा  समझा  और  माइक  उन्हें  थमा  दिया|


हॉल  में  सन्नाटा  सा  छा गया | शिव  चाचा के  हाव -भाव  प्रदशित  कर  रहे  थे  की  वह  कोई  महत्त्वपूर्ण  सूचना  देने  वाले  थे  |


मैंने  अपना  सर  विंडो  के  ग्रिल  से  सटा लिया  और  शिव  चाचा की  बात  सुनाने  को  सचेत  हो  गया |

“जयकारा श्री  राधे  शक्ति  माँ जी ’ दा !” शिव  चाचा  ने  सादे  मगर  धीमे  से  स्वर  में  जयकारा  लगवाया |


“बोल  सांचे  दरबार  की  जय !” अपने  दोनों  हाथ  उठाकर  सेवादारो  के  संग  संग  संगत  ने  जयकारा पूरा  किया |


“प्रिय  माता  के  पुजारियों !” शिव  चाचा गंभीर  स्वर  में  बोले , “पूज्य  देवी  राधे  शक्ति  माँ'  के  दर्शनों  के  लिए  हमने  ह़र पंद्रह  दिन  बाद  यानि  एक  शनिवार  छोड़कर  अगले  शनिवार  , यानी  महीने  में  दो  दिन  निश्चित   किये  थे | यह  सिलसिला  पिछले  कई  सालो से  चला  आ  रहा  है |  माँ  राधे  शक्ति  माँ  की  उपासना  पूजा  अर्चाने  करने  वालों  की  संख्या  निरंतर  बढती  जा  रही  है !” 


हॉल  में  तालिया गूंज  उठी |


“हर  पंद्रह  दिनों  बाद  यहाँ  लगने  वाले  भक्तो  के  मेले  में  आज  में  हर्ष  के  साथ  चर्चा  करना  चाहता  हूँ | पिछले  अनेक  दर्शनों  वाले  दिन  हमने  पाया  है  की  निरंतर  बढती  जा  रही  संगत  के  कारन  हम  लोग  व्यापक  व्यवस्था  करने  में  थोड़ी  असुविधा  महसूस  कर  रहे  है | असुविधा  से  मेरा  क्या  मतलब  है,  में  स्पष्ट  करना  चाहता  हूँ |”


शिव  चाचा एक  क्षण  के  लिए  रुके |


थोडा  ख़ास  कर  गला  साफ़  किया  और  फिर  बात  आगे  बधाई , “ हमारे  तमाम  सेवादार , गुप्ता  परिवार  के  सदस्य, गायक  मंडली और  साजिन्दे , वॉचमेन, और  दर्शन  के  लिए  निश्चित  शनिवार की  सुबह  से  ही  तयारी  में  जुट   जाते  है | दूर  दराज  जैसे  की  दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, या  अन्य  प्रांतों से  आने  वाली  संगत  सुबह  से  ही  यहाँ  पहचानी  शुरू  हो  जाती  है | शाम  ढलते  ही  मुंबई  तथा  आस  पास  के  भक्तो  के  टोले  यहाँ  हॉल  में  एकत्रित  होने  शुरू  हो  जाते  है | पिचले  कई  महीनो  से  ‘देवी  माँ ’ के दर्शानोका  सिलसिला  देर  रात  तक  चलता  रहता  है | कई  बार  तो भोर  तक  हो  जाती  है |”


सांगत  ने  करतल  ध्वनि  से  अनुमोदन  किया |


“जय  माता  दी ” शिव  चाचाने हात  उठाकर  शांत  रहने  का  इशारा  किया | हॉल  में  फिर  हल्का  सा  सन्नाटा  च  गया |


‘अब …” शिव  चाचा  ने  तनिक  ऊँचे  स्वर  में  कहा , “ हमने  निर्णय  लिया  है ..की  संगत  को  पंद्रह  दिन  की  बजाय सात दिन  के  बाद  यानिकी  प्रत्येक  शनिवार  को  पूज्य श्री  राधे  शक्ति  माँ  के  दर्शनों  का  लाभ  प्राप्त  होगा |”


उपस्थित  संगतने  हर्षके  साथ  जो  तालिय  बजने  शुरू  की  … वो  कई  देर  तक  निरंतर  बजती  रही |

“लेकिन ….”  शिव  चाचा ने  फिर  शांती  बनाये  रखने  के  लिए  हाथ  हिलाते  हुए  कहा , “अब  दर्शनों  के  लिए  व्यवस्था  में  थोडा  परिवर्तन  किया  गया  है | आप  लोगोको  हॉल  में  प्रवेश  करने  से  पहले  प्रत्येक  दर्शनार्थी  को  एक  कार्ड  दिया  गया  है |”


अनेक  भक्तोने  अपना  कार्ड  हवा  में  लहराया |


“बिलकुल  ठीक !” शिव  चाचाने  एक  उंगली  ऊपर  की, “अब  मेरी  बात  गौर  से  सुनिए | ये  कार्ड  अलग  अलग  रंग  के  है | लाल, नीला, और  पीला, माता  के  भक्तो ! हमने  व्यवस्था  ये  की  है की  अब  प्रत्येक  शनिवार  को  एक  रंग  के  कार्ड  वाले  भगत  ही  दर्शनों  का  लाभ  प्राप्त  कर  पाएंगे|”


हॉल  में  तनिक  निराशाजनक  “होssss …..” की  आवाज  सुनाई दी |


“देखिये !  यह  व्यवस्था  आप  लोगो  की  सुविधा  के  लिए  ही  है !” शिव  चाचा  तनिक  जोर  देकर  बोले , “मसलन  हम  इस  शनिवार  को  यह  घोषणा  करेंगे  की  आनेवाले  शनिवार  को  किस  कलर  के  कार्ड  की बारी  है ! मान  लीजिये  नीले  रंग  वाले  कार्ड  वालो  की  घोषणा  हुई  तो  प्लीज़ …. उस  दिन  नीले  रंग  वाले कार्ड  वाले  ही  दर्शनो  के  लिए  आये | लाल  या  पीले  रंग  के  कार्ड  वालों  को  हॉल में  प्रवेश  करने  की  अनुमति  नहीं  मिलेगी | उसके  अगले  शनिवार  को  नीला  और  तीसरे  शनिवार  को  पीले  रंग  के  कार्ड  वालो  को  दुर्लभ  दर्शन मिलेंगे | यह  क्रम  ह़र  शनिवार  को  चलेगा |”


 हॉल  में  उपस्थित  संगत  में  से  कुछ  लोगो  ने  निराशात्मक  भाव  से  हाथ  लहराए |


“में  आपकी  भावना  को  समजाता  हूँ !” शिव  चाचा  तनिक  खेद  भरे  स्वर  में  बोले, “में  जानता  हूँ  आप  सभी  हर  शनिवार को  दर्शन  के  लिए  लालाचित  है | सज्जनों  और  देवियों  ! में  पहले  ही  निवेदन  कर  चूका  हूँ  की  यह  साड़ी  व्यवस्था  आप  सभी  श्रधालुओं  की  सुविधा  के  लिए  है | आप  तनिक  हमारे  सेवादारों की तरफ  भी  ध्यान  दीजिये| ये  सभी सेवादार और सेवादारियां निष्काम भाव  से  दोपहर  से  ही  व्यवस्था  में  जुट  जाते  है | देर  रात  तक, साड़ी  संगत  को  दर्शन  करवाने  के  बाद  इन  सबको  ‘माँ  श्री  राधे  शक्ति  माँ ’ के  दर्शन  नसीब  होते  है, तब  तक  थकान से  चूर  इन  सेवादारोकी  हालत देखकर किसीको  भी  तरस  आएगा | ये  सेवादार  ही  क्यों , यहाँ  की  व्यवस्था  सँभालने  वाले  सभी  कार्यकर्ताओं  संगमें गुप्ता  परिवार  के  सदस्यों  का  भी  यही  हाल  होता  है | इसलिए  आप सभी  ‘देवी  माँ ’ के  भक्तो  से  मेरी हाथ  जोड़कर  बिनिती  है, प्लीज़ ! प्लीज़ !! आप  इस  हम  सबकी  लाभकारी व्यवस्था  को  कामयाब  बनाना  में हमारा  सहयोग  करे | हम  लोग  शहरभर में  लगे  होअर्दिंग्स  द्वारा  सभी  को  सूचित  करेंगे  की  इस  शनिवार  किस  रंग  के  कार्ड  वाले  का  नंबर  है | इसके  अलावा भी  आप  ‘गौरव  कुमारजी  या  संजीव  गुप्ता से मोबाइल  पर  जानकारी  प्राप्त  कर  सकते  है | आप  लोगोको  यह  जानकार  भी  हर्ष  होगा  की  ‘पूज्य  श्री  राधे  माँ ’ के  लाइव  दर्शन  आप  घर  बैठे  भी  प्राप्त  कर सकते  है | लाखो  ‘पूज्य  श्री  राधे  माँ ’ के  अन्यन्य  भक्त www.globaladvertisers.in वेबसाइट  पर  लॉग इन  करके  यह  लाभ  प्राप्त  कर  रहे  है | 

जिन  लोगो  को  कार्ड  नहीं  मिला  वह  गौरव  कुमारजी  या  फिर  हमारे  अन्य  सेवादारों से  कार्ड  प्राप्त  कर  सकते  है | 


आईये  ! हम  फिर  माता  के  भजनों  का  आनंद  ले ! जिक्र  मेरी  आनंदमई ‘पूज्य  श्री  राधे  शक्ति  माँ ’ का ”

“बोल  सांचे  दरबार  की  जय …..!” संगत  ने  उत्साहपूर्वक  जिक्र  लगाया |



(निरंतर .....)