Wednesday, August 17, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 7


Part 7


पूज्य राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोर स्थित  हॉल में माता की चौकी का कार्यक्रम हर्षौल्लास और पूर्ण भक्ति रस से भरा था  |  हॉल में 'देवी माँ' के श्रद्धालु की भीड़ निरंतर बढ़ रही थी  |  कई बार तो हॉल में मौजूद सेवादारो को व्यवस्था बनाये रखने में मुश्किल हो रही थी  |  मेरे ख्याल से जितनी श्रद्धालुओ  की संख्या यहाँ मौजूद थी, उससे कही ज्यादा हॉल के बहार कुर्सियों पर बैठे, लाइन में खड़े श्रद्धालु होल में भीतर आने को आतुर थे मगर शांत भाव से  | 

फिर एक पोस्टर हवा में लहेराते हुए, एक सेवादार श्रद्धालु में घूम गया  |  थोड़ी हलचल हुई  |  माता के दर्शनार्थियों अलग अलग जगहों से उठकर सीढियों की तरफ बढे  |  उनके द्वारा खाली की गई जगह फ़ौरन भर गई  |  मुख्य द्वार में श्रद्धालुओ ने भीतर प्रवेश करना प्रारंभ किया  |  में थोडा और दिवार में सट गया  |  सुप्रसिद्ध भजन गायक सार्दुल सिकंदर ने अपनी नयी रचना शुरू की, "मेरे भोले बाबा, राधे माँ का रूप क्या सजा दिया.....".


दर्शनार्थियों ने जमते हुए तालियाँ बजाते हुए उनका साथ दिया  | 


सफ़ेद कुरता पायजामा पहेने सर पर गाँधी टोपी लगाये, एक तनिक भरी से उम्ब्रदराज सज्जन ने उठ कर, अपनी जेब से एक नोट निकला, सरदूल सिकंदर के सर के ऊपर एक-दो-तीन बार घामकर उन्होंने नोट निचे बैठे एक भक्त को थमा दिया  | 


सरदूल सिकंदर ने तनिक जुक कर उन सज्जन के पाँव छूने का उपक्रम किया  | 


"ये महाशय कौन है, अनिल?" मैंने कौतुहल स्वर में पूछा | 


"यह श्री मनमोहन गुप्ताजी (ताउजी)  है"  अनिल मंत्रमुग्ध स्वर में बोला, यह जितना भी कार्यक्रम यहाँ चल रहा है, यह सब गुप्ता परिवार की श्रद्धा और सेवाभावना है |  मनमोहनजी इस परिवार के मुखिया है |  आपने ऍम ऍम मीठाइवाले का नाम सुना है?


"किसने नहीं सुना, भाई?" मैंने सर हिलाया | " मालाड स्टेशन के बहार उनकी मिष्टान भंडार पर तो अपार भीड़ लगी रहती है |  मैंने बहुतेरी बार ऍम ऍम के खास लस्सी का आनंद उठाया है |  "


"उसी ऍम ऍम मिठाई की दूकान के मालिक है ये मनमोहन गुप्ता |  अनिल ने बात आगे बताई |  अपना सर्वस्व इस गुप्ता परिवार ने पूज्य देवी माँ को समर्पित कर दिया है |  जब से देवी माँ ने इनके निवास स्थान पर आसन लगाया है, गुप्ता परिवार तो धन्य हो गया |  इस परिवार में ४० सदस्य है |  छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सदस्य देवी माँ के प्रति कृतज्ञ है |  देवी माँ जब भी किसी पर प्रस्सन होती है तो फिर ऐसा नजारा होता है, भगत जी |  हर पंद्रह दिन के बाद यहाँ माता की चौकी होती है |  हजारो की संख्या में देवी माँ के भक्त दर्शनों के लिए खिचे चले आते है |   जरा ऊपर देखो | 


मैंने गर्दन घुमाई | " वो महिला जो हाथ में भोजन का थाल लिए है....." अनिल तनिक मेरी तरफ जुका | " वो श्रीमती स्नेहलता गुप्ता है"मनमोहन गुप्ताजी की धर्मपत्नी | 


एक दो पुरुष और महिला सेवादार फ़ौरन आगे पहुचे |  एक चुनरी का पर्दा बनाकर श्रीमती स्नेहलता गुप्ता ने माता को भोग लगाया | 


"अब भंडारा शुरू हो जायेगा", अनिल ने हर्ष के स्वर में कहा, "ऊपर तीसरे माले पर बहुत विशाल टेरेस पर माता के प्रसाद की व्यवस्था है ! भगतजी, शादी ब्याह में जो खाना परोसा जाता है, उससे भी कही बढाकर उस भंडारे में हजारोकी संख्या में श्रद्धालु माता का प्रसाद प्राप्त करते है |  "


"कोई पर्ची वर्ची कटनी पड़ती है क्या यहाँ?", मैंने उत्सुक स्वर में पूछा |  "या कोई टोकन खरीदना पड़ता है?"


"आपका दिमाग ख़राब है क्या?" अनिल तनिक रूद्र स्वर में बोला |  " भंडारे में कभी पैसा लिया जाता है क्या?" एकदम फ्री है जनाब ! चाहे जितने लोग आये, चाहे जितना खाए पेट भर के |  माता का प्रसाद है ये |  एक बात बताऊ?"


यह तनिक धीमे स्वर में बोला, "बहुत से लोग तो इसी लालच में घसे चले आते है की चलो, बढ़िया भोजन तो मिलेगा |  "


"सत्संग की तरफ ध्यान दो" तभी एक सुन्दर सा युवक मेरे निकट से गुजरते हुए बोला "प्लीज़! बाते मत करो"


मैंने उसकी पीठ घूरते हुए अनिल से पूछा, "यह  बंदा कौन है, भैया? "..."इसका नाम ......." अनिल एकदम धीमे स्वर में बोला, 'संजीव गुप्ता है" देवी माँ के चरणों का सेवादार |    


निरंतर.........

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 6



Part 6


बोरीवली पश्चिम में रेलवे स्टेशन से अगर आप पैदल चले तो मुश्किल से १० मिनिट लगेंगे और आप पूज्य 'राधे देवी माँ' भवन पहुच जायेंगे. में वही पर उस समय ग्राउंड फ्लोर स्थित हॉल में बड़े धूम धाम से हो रही 'माता की चौकी' में उपस्थित था जहा सुप्रसिद्ध गायक सरदूल सिकंदर बड़ी तन्मयता से 'मेरी गुडिया जैसी राधे माँ' के भजन प्रस्तुत कर रहे थे |

एक सेवादार ने फिर एक पोस्टर पब्लिक में लेहराया जिस पर अगले दर्शनार्थियों के नंबर लिखे थे | थोड़ी हलचल हुई | जिन लोगो को पोस्टर में लिखे नंबर की पर्चियां मिली थी, बड़ी श्रद्धा और उल्हास मगर शांति के साथ सीढियों की तरफ बढ़ने लगे|  


तभी दर्शन करके लौट रहे एक सज्जन को देखकर मैंने अपनी कोहनी अनिल से हटाकर पूछा, वो लम्बा सा आदमी मुझे जाना पहेचाना सा लग रहा है|


"कौनसा?" अनिल ने उस" तरफ देखा, जिधर मेरी दृष्टी थी. "वो .... वो यहाँ के बहुत बड़े डॉक्टर है | देवी माँ के अनन्य सेवक है |"


"किसकी बात कर रहे हो?" मैंने अनिश्चित स्वर में कहा, "वो चश्मेवाले?" वो नहीं प्रभुजी, वो लम्बी चोटी वाले... जो दरबार की तरफ जा रहे है|


"अच्छा वो?" अनिल ने भावो को नचाया, "उसको नहीं पहेचाना?" वो अरविंदर है|" अरविंदर सिह| सूफी गायक, उनकी बहुत से एल्बम निकले है| आपने उनको जरूर टीवी पे देखा होगा|


"हा.. हा ...हा... !" मैंने सहमती में तिन बार सर हिलाया. "याद आया, बहुत बार देखा है टीवी पर" यहाँ तो बहुत बहुत पहोची हुई हस्तियाँ देवी माँ के दर्शनों के लिए आते है| क्या बात है|


"चमत्कार को नमस्कार है, भाईजी" अनिल श्रद्धा और विश्वास भरे स्वर में बोला| आज सायंस और मीडिया का जमाना है| पढ़े लिखे समजदार लोग है| कुछ देखते है, तभी तो यहाँ आते है| कुछ मिलता है तभी तो यहाँ आते है| हर पन्द्रह रोज बाद यहाँ होनेवाली 'माता की चौकी' में हजारो भक्तो की भीड़ और वह भी ऐसे भक्तो की भीड़ जो एक बार 'देवी माँ' के दर्शन हो जाने के बाद भी बार-बार अनेक बार उनके दर्शनों की चाह रखते है| यह देवी माँ का चमत्कार है|


तभी प्रवेश द्वार में एक पंद्रह साल की लड़की ने भीतर प्रवेश किया| उसके हाथ में गुलाब का फूल था| उसके चहेरे पर उत्सुकता के भाव थे| आगे रास्ता नहीं होने के कारण वह मेरी बगल में खड़ी हो गई|


"तुम्हारा क्या नाम है, बिटिया? मैंने सहज स्वर में पूछा| "वैशाली" वह एकदम बाल सहज स्वर में बोली| "वैशाली मोरे" महाराष्ट्रियन हु| आप भी देवी माँ के दर्शनों के लिए आये है? मैंने तनिक रुक कर पूछा. "पहेले कितनी बार दर्शन हुए?"


एक बार भी नहीं| . उसने इंकार में सिर हिलाया| में तो फर्स्ट टाइम आई हु| वो भी माँ की कृपा हुई तो|


"वेरी गुड" क्या करती है बेटा? मैंने प्रशंशात्मक द्दृष्टी  से देखा |  "बी कॉम  फर्स्ट इयर के फॉर्म भरे है |"  वो मेरी तरफ देखकर बोली, "अंकल, मेरे साथ जो चमत्कार हुआ है, उस पर मुझे खुद्कोभी यकीं नहीं हो रहा |  बताऊ  क्या हुआ | "


"बताओ" मैंने व्यग्र स्वर में पुछा |  " में कल .... उसने कल स्वर पर जोर दिया. बांद्रा वेस्ट गई थी, एडमिशन के लिए |  यहाँ से ट्रेन पकड़ी, बांद्रा उतरी और दो अन्य लड़कियों के साथ शेयर रिक्शा लिया |  कॉलेज के सामने उतरकर में जल्दी जल्दी लाइन में लगने की हडबडाहट में अपना फ़ोन रिक्शा में भूल गई | अंकल, हम साधारण परिवार के लोग है | मैंने बड़ी कंजूसी करके, कई जगह छोटी मोटी सर्विस करके जैसे तैसे पैसे जमा करने बाद, अपनी पसंद का मोबाइल ख़रीदा था | अभी दस दिन पहेले तो लिया था और वह रिक्शा में छुट गया | "


वह गंभीर निगाहों से मेरी तरफ देख रही थी | उसने होठो पर जीभ फिराई और फिर बोली, अपना पसंद का मोबाइल गुम हो जाने के कारण में बड़ी निराश थी | मैं एकदम ख़राब मूड और टेंशन में वापिस घर लौट रही थी तभी मैंने बैनर पर राधे देवी माँ का फोटो देखा |  मैंने मन ही मन प्रार्थना की, हे देवी माँ मेरा मोबाइल वापिस मिल जाए तो मैं आपके दर्शनों के लिए आउंगी |


वह सास लेने के लिए रुकी और फिर श्रद्धा भरे स्वर में बोली, मुझे रात को नींद में भी मोबाइल के सपने आते रहे |  आज सुबह जब में बोरीवली स्टेशन पर पोह्ची  तो, अंकल वही रिक्शावाला, सोचो कहा बांद्रा और कहा बोरीवली! वही रिक्शावाला मिल गया |  मैंने जैसेही उसकी तरफ देखा, उसने मेरा मोबाइल मेरे हाथ में थमा दिया |  मैंने पूछा भी आपको कैसे मालूम यह मेरा मोबाइल है, तो वह मुस्कुराकर बोला की उसने मुझे उस मोबाइल पे बातें करते देखा था |  अंकल, मोबाइल लौटने के बाद भाडा लेकर तुरंत रवाना हो गया |  मैं उसका अच्छी तरह से धन्यवाद् भी नहीं कर पाई | 


वैशाली मोरे ने अपने फूल वाले हाथ को तनिक ऊपर उठाया |  मैं देवी माँ का धन्यवाद् करने आई हूँ  | 


तभी हॉल में जोर का जयकारा गूंजा  |  बोल साचे दरबार की जय  | 

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 5



Part - 5





बारिश से भीगने से बचने के प्रयास में, मै न जाने किस डोर से बंधा  श्रधालुओ की कतार  में लगकर श्री राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोअर स्थित हॉल में पहुँच गया | इस दौरान लाइन में मेरे आगे खड़े लुधिअना के 'अर्जुन सचदेवा' ने बताया की किस प्रकार श्री राधे शक्ति  माँ की दया  दृष्टि से उनके यहाँ ११ वर्ष के बात लड़का हुआ और वह 'देवी माँ' के प्रति कृत्यज्ञता प्रकट करने यहाँ आया था | उसके बाद मुझे हॉल में अनिल नाम का युवक मिला जो फगवाडा से आया था | उसीने मुझे दर्शनों के लिए पर्ची लाकर दी | हॉल में आगे बढ़ने को रास्ता नहीं होने के कारण हम प्रवेश द्वार के निकट दीवार से सट कर खड़े हो गए |


"अनिल! मैंने उसके कान के निकट अपना चेहरा किया, "तुम तो एकदम नौजवान हो ! इस उम्र में भक्ति - पूजा - पथ? क्या उम्र होगी तुम्हारी? यही कोई २५-२६ साल?"

"करेक्ट!" वह मुस्कुराया , " ठीक जजमेंट ! इस  महिने  २५ पुरे करके 26 वे साल में प्रवेश करुन्ग्सा| इसी 15 जुलाई को मेरा जन्मदिन है ! और कितना भाग्यशाली हूँ मै ! मालूम है आपको 15 जुलाई को क्या है?"


"क्या है?" मैंने तनिक भवो को ऊपर किया|


"गुरु पोर्णिमा है!" वह एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोला, "उस दिन श्री राधे माँ अपने सभी शिष्योंको विशेष दर्शन देने वाली है ! मै धन्य हो जाऊंगा जब देवी माँ के आशिर्वाद के साथ अपना जन्म दिन सेलिब्रेट करूँगा !"

उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा|

"तुमने बताया नहीं ?", मैंने अनिल को टोका, "तुम इस खाने पीने की उम्र में ये पूजा पथ भक्ति और सेवा में जुटे हो ! क्यों?"


"मत पूछो यार!", वह तनिक गंभीर होकर सजिंदा स्वर में बोला, "दरअसल, मैंने चंडीगढ़ युनिवेर्सिटी से अपनी graduation पूरी की| इस दौरान गलत सांगत के कारण उलटे-सीधे कामो में पद गया | आवारागर्दी, जुआ-शराब, लढाई-झगडा, और न जाने क्या क्या ? घर से अनाप -शनाप पैसे आते थे जेब खर्च और पढाई के लिए| बुरी सोहबत  ने मुझे एक गैर जिम्मेदार और जिद्दी लड़का बना दिया | रोजाना की मारपीट और गलत हरकतों के कारण घर शिकायते पोछने लगी| पेरेंट्स ने फगवाडा वापिस  बुला लिया | वह में थोडेही सुधेरेने वाला था?, बुरी हरकतों के कारण मै पुरे फगवाडा में बदनाम हो गया था |"


मैंने सहानभूति भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा |

"फिर एक बार फगवाडा में किसी भक्त के घर 'देवी माँ' का आगमन हुआ|", वह शुन्य में ताकते हुए बोला, " मेरे माँ-बाप जबरदस्ती से अपने साथ दर्शनों के लिए ले गए| इसी प्रकार भक्तों की भीड़ में हम कतार बध 'देवी माँ' के सामने पहुंचे| मेरी माँ आखों में आसू लिए बहुत देर तक मान ही मान न जाने क्या प्रार्थना कर रही थी | कापते होठों से न जाने क्या बुदबुदाते हुए वह निरंतर हाथ जोड़े जा रही थी| हम देवी माँ के संमुझ पहुंगे| देवी माँ ने पहले मेरे पिता की तरफ देखा उनके चेहरे पर छाये निराशा के भावों को पढ़ा | फिर मेरी माँ के झरते आसुंओं को निहारा| तब देवी माँ ने एक नज़र मुझ पर डाली | मेरे अंतर की आत्मा को जैसे किसी ने झकझोर कर रख दिया.....में एकदम उनके क़दमों में गिर गया|

मेरे मुह से बोल नहीं फुट रहे थे, मगर मेरे चेहरे पर पश्चाताप और क्षमायाचना के भाव उम्र आये थे | 'देवी माँ' ने अपना त्रिशूल वाला हाथ तनिक उठाया और आशिर्वाद की मुद्रा में मुस्कुराई |"

वह सांस लेने के लिए रुका|


"बस..." अनिल गंभी स्वर में बोला, "वह दिन और आज...............! उसी दिन से मेरी सभी गलत हरकतों से पिंड छुट गया | नशा - पत्ता बंद! शराब - सिगरेट आदि से ऐसी घृणा हुई की अब तो कोई मेरे सामने बीडी -सिगरेट पीता है, तोह में उससे मरने - मारने पे उतर हो जाता हूँ | मैंने गलत सोहबत वाले सभी दोस्तों को अलविदा कह दिया ! सुबह तडक उठकर नहा - धोकर, पूजा- पाठ के बाद 'देवी माँ' की दी हुई माला के साथ पाठ करने के बाद, पिताजी से भी पहले अपने कपडे  की शोरूम में पोहोचने लगा| मेरी माँ तो जैसे निहाल हो गयी | मेरे पिता का सीना गर्व से फुल जाता है, जब कोई उनके सामने मेरी तारीफों के पूल बंधता है | "


"वह अनिल!" मैंने प्रशंसात्मक स्वर में कहा, "'देवी माँ ने तोह तुम्हारा कायाकल्प कर दिया!"


उसने हाथ जोड़कर छत की तरफ देखा," 'देवी माँ' है ही ऐसे !"



(निरंतर...)

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 4




Part - 4






श्री राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोअर स्थित बड़े से हॉल में माता की चौकी के उस कार्यक्रम में श्रधालुओ की उस भीड़ में मुझे अलग अलग स्थानों से आये श्रधालुओ के चेहरे नज़र आ रहे थे | मैंने चारो तरफ निगाह दौड़ाने के बाद साथ बैठे सज्जन से धीमे स्वर में पुछा, "देवी माँ किधर बैठे है?"

'वो तोह पाचवे मेल पर विराजमान है|" उसने गौर से मेरी तरफ देखा, " आपको दर्शनों के लिए नंबर पर्ची मिली?"

"नहीं" मैंने इंकार में सिर हिलाया "मुझे कोई पर्ची -वरची मिली नहीं है|"

"कोई बात नहीं|" उसने आश्वस्त भाव से मेरे हाथ को थपथपाया "में ला देता हूँ|"

"में भी आपके साथ चलता हूँ|" मैंने उसे उठाते देखकर कहा, "कहासे मिलती है पर्ची?"

उसने इशारे से आने का संकेत दिया|

में उसके पीछे-पीछे हाल में प्रवेश करने वाले गेट तक पहुंचा | वह एक सेवादार के कम में कुछ कहने के बाद बहार गया और तुरंत लौट आया |

"ये लो........" उसने एक पर्ची मेरे हाथ में थमाई,"आपका नंबर है 825 |"

"इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने पहले पर्ची और फिर उसकी तरफ देखा |

"अभी समझाता हूँ|" वह हॉल में एक साइड में खड़े कुछ लोगो की तरफ देखने लगा | तभी एक सेवादार ने एक सूचना देने वाला पोस्टर पब्लिक की और दिखाया | उसपर लिखा था '551 to 600'

"देखो!" वह श्रद्धालु बोला,  अभी यह लोग जिनको  '551 to 600' नंबर तक की पर्ची मिली है, वह श्रद्धालु सीढियों के रास्ते चढ़ते हुए पाचवे माला तक जायेंगे | वही पर देवी माँ के दर्शन होंगे |"

हॉल में बैठे कुछ श्रद्धालु पुरुष, महिलाये, बच्चे, नौजवान सीढियों की तरफ बड़े अनुशासनात्मक भाव से बढे |

"देखो, अभी ' 600  श्रधालुओं को दर्शन का बुलावा आया है |" मेरे साथ खड़े सज्जन बोले " वोह क्या है ! जैसे पहले ५० दर्शनार्थी दर्शन करके निचे उतरेंगे, आगे की पर्ची वाले पचास लोगोंको ऊपर भेजा जायेगा | अभी कुछ समय बाद फिर पचास श्रधालुओं को दर्शन के लिए भेजा जायेगा | आपका नंबर क्या है ?"

"825" मैंने पर्ची में देख कर कहा |

"समझो आधा पौन घंटा और लगेगा |"  वह मुस्कुराया,  "तब तक आप भजनों का आनंद लो |"

"आपका नाम क्या है भगतजी?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीरे से पुछा|

"अनिल", वह हौले से मुस्कुराया, " में फगवाडा का रहने वाला हूँ "

"फगवाडा?" मैंने जिज्ञासु भाव से पुछा, "यह कहा है?"

"फगवाडा पंजाब में है |", अनिल ने बताया, "लुधियाना का नाम सुना है?"

"हाँ" मैंने सहमती में सिर हिलाया |

"बस लुधिअना के पास ही है|" अनिल ने सिर हिलाया, "में यहाँ देवी माँ की सेवा की लिए आया हूँ| मुझे बड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ी, बहुत हजारी लगनी पड़ी | तब जाकर सेवा का आदेश हुआ |"

"क्या सेवा करते हो?" मैंने सहज भाव से पुछा |

"जो मिल जाये ......" वह आत्मविभोर स्वर में बोला, "यह भवन में जो भी सेवा मिलती, में उसे अपना सौभाग्य मनाता हूँ |"

"जैसे?" मैंने प्रश्न किया|

"जैसे... " वह तनिक सोच कर बोला, "जैसे कुछ भी | अभी जब सभी श्रद्धालु दर्शने करने के बाद चले जायेंगे तोह पांचवे माला तक सीढियों की सफाई, ऊपर हॉल में सफाई करना, यहाँ हाल के दरी गद्दे उठाना, हॉल में एक-दम साफ़ सफाई करना वैगेरह वैगेरह .......!"

"तुम तो बहोत ही किस्मत वाले हो अनिल " मैंने मुग्ध निगाहों से उसे देखा, " मुझे भी ऐसी कोई सेवा मिल जाएगी क्या?"

"अभी से?" अनिल ने हैरानी के साथ कहा, पता है?" में पिछले ३ साल से यहाँ लगातार हर दुसरे तीसरे शनिवार
को आ रहा हूँ | लगातार आरजी लगाने के बाद 'देवी माँ ' ने मुझ पर यह मेहेरबानी की है | मेरा फगवाडा मैंने बहोत बड़ा कपड़ो का शो-रूम है | में पिछले १६ दिनों से यही 'देवी माँ 'की सेवा में हूँ |

"वापिस कब आयोगे? " मैंने कौतुहल से पुछा |

अनिल श्रद्धाभाव  से बोला , " जब 'देवी माँ'  का हुकुम होगा !"

(निरंतर ...)

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 3

Part - 3




कतार में लगे श्रधालुओं में से एक ने बुलंद स्वर में  जयकारा लगाया "जयकारा मेरी सच्ची सरकार श्री राधे शक्ती माँजी का ...."

"बोल सांचे दरबार की जय..." उत्तर में पूरी कतार ने दोनों हाथ उठाकर जयकारा पूरा किया |


तभी बूंदा बांदी ने तेज बोछार के साथ बरसात का रूप ले लिया | कतार जो धीमे धीमे आगे सरक रही थी, एकदम से तेज रफ़्तार में आगे बढ़ने लगी | एक गहिरे नीले सफारी सूट पहने सेवादार ने मुझे लाल रंग का रुमाल दिया | रुमाल पर अलग अलग तरह से "श्री राधे माँ" का नाम प्रिंट किया हुआ था | मैंने रुमाल को सर पर बांधने की कोशिश की | मेरे पिच्छे वाले सज्जन ने मदत करते हुए रुमाल को सही तरीके से बाँध दिया |


मैंने अपने आगे वाले पंजाब से ए अर्जुन सचदेवा की कहानी को गौर से सुना | उस आदमीं के स्वर में जो विश्वास, जो आशा, जो श्रध्हा, जो पूर्ण समर्पण की भावना चालक रही थी, में बिना दर्शन किये ही श्री राधे शक्ती माँ को अपने आस पास महसूस करने लगा |


अर्जुन सचदेवा ने बता की शादी के लगभग 11 साल बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई और यह सब 'देवी माँ' की असीम अनुकम्पा और आशीर्वाद से ही संभव हुआ | अर्जुन सचदेवा अकेला ही देवी माँ का धन्यवाद् करने आया था |उसकी दादी की तबियत थोड़ी नरम थी, इसलिए अपनी पत्नी को उनकी सेवा के लिए छोड़कर आया था |


में कतार के साथ जैसे ही ग्राउंड फ्लोर पर स्थित बड़े से हॉल में पहुंचा, मेरे सामने अद्भुत नजारा था |
हॉल माता के भक्तों से खचाखच भरा था | अनेक सेवादार और सेवादारिया बड़े विनम्र और श्रद्धाभाव से भक्तो को अनुशानात्मक तरीके से बिठा रहे थे |


सामने भगवती माँ की चौकी का कार्यक्रम चल रहा था | सुन्दर दरबार सजा था | साजिन्दे बड़े कलात्मक ढंग से अपने अपने इंस्ट्रूमेंट बजा रहे थे | में जैसे ही दरबार के निकट पहुंचा, मैंने गौर से भजन गा रहे कलाकार की तरफ देखा |
बड़े ही मधुर और निपुण अधेस्वरों में बह गा रहा था | "मेरे भोले  बाबा, राधे माँ का रूप क्या सजा दिया ......"
एक सज्जन ने थोडा सरक कर मेरे लिए बैठने की जगह बनाई | मेंने कृतज्ञता पूर्वक उसकी तरफ मुस्कुराकर बैठते हुए हाल में नज़र दौड़ाई|


श्रधालुओं में ठसाठस भरे हॉल में सभी को बड़े व्यवस्थित ढंग से बैठाया गया था | अलग अलग जगहों से आये सभी श्रद्धालु भक्ति भाव तालिया बजाते, झूमते हुए भजन में लीन थे |


"बहुत बढ़िया गा रहे है भाई !" मैंने प्रशंसामत स्वर में बाजू में बैठे व्यक्ति से पुछा, " इन भाईसाहब का नाम क्या है?"
"आप नहीं जानते ?" उस व्यक्ति ने अत्यंत गर्व भरे स्वर में कहा, " ये पंजाब से आये है | हिंदुस्तान ही नहीं पुरे विश्व में इनकी गायकी की तारीफ होती है | ये 'सरदूल सिकंदर' है|"




में आश्चर्य चकित रह गया|


एक मुसलमान गायक 'श्री राधे शक्ति माँ' का गुणगान कर रहा था और वोह भी अत्यंत भक्ति भाव से !



धन्य श्री राधे शक्ति माँ !!
(निरंतर...)

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 2


Part 2

'मेरा नाम अर्जुन सचदेवा है... मेरे आगे खड़ा व्यक्ति थोड़ी गर्दन मेरी तरफ घुमा कर बोला ' में लुधिअना का रहनेवाला हूँ | हमारा सायकलों के पार्ट्स बनाने का कारखाना है | यह हमारा पुश्तेनी बिज़नस है | देवी माँ का दिया सब कुछ है | सच पूछो तो  कोई कमी नहीं थी..."
लाइन धीरे धीरे आगे सरक रही थी | उसने तनिक रुकने के बाद बोलना शुरू किया, " शानदार बंगला, बड़ा सा कारखाना, ढेरो वर्कर्स, घर में नौकर - चाकर ! एकदम खुशहाल परिवार | मेरे माता पिता और मेरी दादी ....  अभीतक जिंदा है | ....उसकी उम्र बताओ तो  आपको हैरानी होंगे .... 92 साल .....अभी भी जिंदा है |" 
" घर में धन -दौलत, मोटर गाड़ी, सुख आराम की कोई कमी नहीं ...." अर्जुन सचदेवा गंभीर स्वर में बोले, " बस एक ही कमी खटकती थी .. मेरी शादी को 11 साल हो गए थे मगर ...कोई औलाद नहीं थी | पहले 2 -3 साल तो  हसी ख़ुशी गुजर गए | उसके बाद हमारे घर में.... रिश्तेदारों में खुसुर - फुसुर शुरू हो गई | मेरी दादी की हर घडी एक ही रट रहती, 'पोता चाहिए | पोते को गोद में खिलाना है | मेरी श्वासों का क्या भरोसा ! अर्जुन पुतर.. पोता चाहिए ! "
उसने जेब से रुमाल निकालकर अपने सर पर विशिष्ठ तरीके से बांधा |
"फिर क्या हुआ ??" मैंने उत्कंठा भरे स्वर में पुछा|
मेरी पत्नी माधुरी ने अनेक डॉक्टरों, वैद्यों से राय-मशवरा किया ! दवाओं से लेकर दुआओं का दौर शुरू हो गया | जिसने जो बोला वही करते ?... पीरों की दरगाहों पर मन्नते मांगी | मंदिरों में नारियल चढ़ाये | धागे बांधे |  यहाँ से वहां पता नहीं कहाँ कहाँ के धक्के खाये | अब तो हम दोनों भी निराश होने लगे | घर में अजीब सी चिंता ने आकर डेरा दाल लिया | दादी की 'पोता चाहिए' रट अब धीमी पड़ने लगी | उसके चेहरे पर निराशा और उदासी की ज़ुरियां और भी गहरी हो उठी |"
'भगत जी ... " एक और सेवादार पार्थना भरे स्वर में टोका .."थोडा जल्दी चलिए और हाँ अपना सर ढक लीजिये |"
मैंने आगे पीछे देखा | सभीके  सिरों पे रुमाल बंधे थे |
"लेकिन ,,,, " मैंने अपनी जेबें टटोलते कहाँ "मेरे पास तोह सर ढकने का रुमाल नहीं नहीं |"
"थोडा आगे चलिए " सेवादार ने मेरा कन्धा थपथपाया, " आगे एक जगह रुमाल रखे है | वहां से लेकर सर पे बांध लेना|"
"जब हम एकदम निराशा के समुन्दर में गोते लगा रहे थे, " अर्जुन सचदेवा ने आगे कहा, "तभी किसीने हमें सुझाव दिया की आप एक बार पूज्य श्री राधे शक्ती माँ की शरण में जाकर तो देखिये | उसने हमें यहाँ का एड्रेस दिया | पहले तो मैंने लापरवाही से टाल दिया | मगर मेरी पत्नी माधुरी  ने कहा, एक बार ही जाने  में क्या हर्ज़ है | हम दोनों यहाँ आये | पहली बार जब हमने श्री राधे शक्ती माँ के दर्शन किये तो हम दोनों के दिलों में आशा की किरण जैसे फुट पड़ी | हम निरंतर आते रहे | 'देवी माँ' के चरणों में माथा टिकाते रहे | फिर्याद करते रहे !... और फिर जैसे चमत्कार हो गया | 'देवी माँ' ने हमारे बहते आसुओं पर तरस खाया| "
"जैसे हमारे सोये भाग्य जाग उठे | 'देवी माँ' की कृपा जैसे अमृत बनकर हम पर बरसने लगी |"
"फिर क्या हुआ?" .. मैंने उतावले स्वर में पुछा... 
"फिर वही  हुआ जो देवी माँ की कृपा से होता है ".. अर्जुन सचदेवा चेह्कते स्वर में बोला....'दादी को पोता मिल गया"...

(निरन्तर..... )

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 1

Part 1

एक शनिवार /

उस समय रात्रि एक लगभग ९.३० बजे थे / में रात्रि का भोजन करने के बाद यूँही टहलने के लिए निचे उतर आया और धीमे धीमे कदमो से चलता हुआ सोडावाला लेन की तरफ निकल आया / बोरीवली पश्चिम में चंद्रावरकर रोड पर स्थित सोडावाला लेन मेरी पसंदीदा गली है/ जहाँ में अक्सर टहलने के लिए निकल आया करता हूँ /

अचानक हलकी हलकी बूंदा बांदी होने लगी /

मैंने भीगने से पहले बचेने के लिए जगह तलाश करते हुए इधर उधर झाका / तभी मुझे एक बिल्डिंग के सामने कुछ लोगो का हुजूम दिखाई दिया / मैंने तनिक कदम तेज किये मगर मुझे आश्चर्य हुआ / वहां लगी कतार में कोई भी सज्जन बारिश से बचने के लिए चिंतित दिखाई नहीं दे रहा था/ कतार में लगे बच्चे , बूढ़े, जवान, बुजुर्ग, महिलाये, लडकिया, बढे आराम से धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे /

यह लाइन कैसी है ? इस वक़्त इन लोगो को कतार बद्ध होकर कहाँ जाता है ? मेरा जिज्ञासु मान उत्सुकता से भर उठा / में कतार के निकट पहुंचा / एक सज्जन ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर मुझसे कहा 'भगत जी ! कृपया लाइन में आईये /

में जब तक कुछ समझ पाता मेरे पीछे दस-बारह सज्जन कतार में लग चुके थे / कुछ लोगो के हाथों में फुल के गुलदस्ते, कईओंके हाथ में नारियल चुनरी और अन्य पूजा अदि का सामान था / शायद प्रशाद वैगेरह/
मैंने उत्सुकता से अपने आगे खड़े लगभग चालीस वर्षीय व्यक्ति से पुछा ''भाई, हम लोग कहा जा रहे है?''
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुई सवाल किया, "पहली बार आये हो क्या? "

मैंने सहमती में गर्दन हिलाई!

"आज शनिवार है/" , वह भावविभोर स्वर में बोला, "आज भाग खुल जायेंगे / देवी माँ के दर्शन होंगे/"
"देवी माँ?" मैंने उत्सुकता से पुछा "यहाँ कोई मंदिर है?"

"मंदिर से भी बढ़कर ...... " वह एकदम श्रद्धा भरे स्वर में बोला, "यह राधे माँ भवन है.... " वह मंत्रमुग्ध निगाहों से भवन की पाचवी मंझिल की तरफ निहारने लगा, " देखो भगतजी .... जगतजगनी माँ भगवती एक है, मगर उसके करोडो करोडो उपासक है / अब जब सभी लोग माँ को पुकारेंगे तो माँ का एक साथ सभी के पास पहुचना तो संभव नहीं होगा ना / तब साक्षात् माँ अपने स्वरुप को किसी दूत के माध्यम से सबके पास पहुचती है / ऐसी ही माँ भगवती की दूत हमारी देवी माँ है / सभी उनको राधे शक्ति माँ के नाम से पुकारते है /

"आप कहाँ से पधारे है, भैया?" मैंने प्रश्न किया ?

"में..?"उसने मेरी तरफ देख कर कहा, "लुधिआना, पंजाब से ! और क्यों आया हूँ सुनोगे?"

"सुनाओ, !" मैंने सर हिलाया / वह गंभीर स्वर में बोला, "सुनो ...."