Part 7
पूज्य राधे माँ भवन के ग्राउंड फ्लोर स्थित हॉल में माता की चौकी का कार्यक्रम हर्षौल्लास और पूर्ण भक्ति रस से भरा था | हॉल में 'देवी माँ' के श्रद्धालु की भीड़ निरंतर बढ़ रही थी | कई बार तो हॉल में मौजूद सेवादारो को व्यवस्था बनाये रखने में मुश्किल हो रही थी | मेरे ख्याल से जितनी श्रद्धालुओ की संख्या यहाँ मौजूद थी, उससे कही ज्यादा हॉल के बहार कुर्सियों पर बैठे, लाइन में खड़े श्रद्धालु होल में भीतर आने को आतुर थे मगर शांत भाव से |
फिर एक पोस्टर हवा में लहेराते हुए, एक सेवादार श्रद्धालु में घूम गया | थोड़ी हलचल हुई | माता के दर्शनार्थियों अलग अलग जगहों से उठकर सीढियों की तरफ बढे | उनके द्वारा खाली की गई जगह फ़ौरन भर गई | मुख्य द्वार में श्रद्धालुओ ने भीतर प्रवेश करना प्रारंभ किया | में थोडा और दिवार में सट गया | सुप्रसिद्ध भजन गायक सार्दुल सिकंदर ने अपनी नयी रचना शुरू की, "मेरे भोले बाबा, राधे माँ का रूप क्या सजा दिया.....".
दर्शनार्थियों ने जमते हुए तालियाँ बजाते हुए उनका साथ दिया |
सफ़ेद कुरता पायजामा पहेने सर पर गाँधी टोपी लगाये, एक तनिक भरी से उम्ब्रदराज सज्जन ने उठ कर, अपनी जेब से एक नोट निकला, सरदूल सिकंदर के सर के ऊपर एक-दो-तीन बार घामकर उन्होंने नोट निचे बैठे एक भक्त को थमा दिया |
सरदूल सिकंदर ने तनिक जुक कर उन सज्जन के पाँव छूने का उपक्रम किया |
"ये महाशय कौन है, अनिल?" मैंने कौतुहल स्वर में पूछा |
"यह श्री मनमोहन गुप्ताजी (ताउजी) है" अनिल मंत्रमुग्ध स्वर में बोला, यह जितना भी कार्यक्रम यहाँ चल रहा है, यह सब गुप्ता परिवार की श्रद्धा और सेवाभावना है | मनमोहनजी इस परिवार के मुखिया है | आपने ऍम ऍम मीठाइवाले का नाम सुना है?
"किसने नहीं सुना, भाई?" मैंने सर हिलाया | " मालाड स्टेशन के बहार उनकी मिष्टान भंडार पर तो अपार भीड़ लगी रहती है | मैंने बहुतेरी बार ऍम ऍम के खास लस्सी का आनंद उठाया है | "
"उसी ऍम ऍम मिठाई की दूकान के मालिक है ये मनमोहन गुप्ता | अनिल ने बात आगे बताई | अपना सर्वस्व इस गुप्ता परिवार ने पूज्य देवी माँ को समर्पित कर दिया है | जब से देवी माँ ने इनके निवास स्थान पर आसन लगाया है, गुप्ता परिवार तो धन्य हो गया | इस परिवार में ४० सदस्य है | छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा सदस्य देवी माँ के प्रति कृतज्ञ है | देवी माँ जब भी किसी पर प्रस्सन होती है तो फिर ऐसा नजारा होता है, भगत जी | हर पंद्रह दिन के बाद यहाँ माता की चौकी होती है | हजारो की संख्या में देवी माँ के भक्त दर्शनों के लिए खिचे चले आते है | जरा ऊपर देखो |
मैंने गर्दन घुमाई | " वो महिला जो हाथ में भोजन का थाल लिए है....." अनिल तनिक मेरी तरफ जुका | " वो श्रीमती स्नेहलता गुप्ता है"मनमोहन गुप्ताजी की धर्मपत्नी |
एक दो पुरुष और महिला सेवादार फ़ौरन आगे पहुचे | एक चुनरी का पर्दा बनाकर श्रीमती स्नेहलता गुप्ता ने माता को भोग लगाया |
"अब भंडारा शुरू हो जायेगा", अनिल ने हर्ष के स्वर में कहा, "ऊपर तीसरे माले पर बहुत विशाल टेरेस पर माता के प्रसाद की व्यवस्था है ! भगतजी, शादी ब्याह में जो खाना परोसा जाता है, उससे भी कही बढाकर उस भंडारे में हजारोकी संख्या में श्रद्धालु माता का प्रसाद प्राप्त करते है | "
"कोई पर्ची वर्ची कटनी पड़ती है क्या यहाँ?", मैंने उत्सुक स्वर में पूछा | "या कोई टोकन खरीदना पड़ता है?"
"आपका दिमाग ख़राब है क्या?" अनिल तनिक रूद्र स्वर में बोला | " भंडारे में कभी पैसा लिया जाता है क्या?" एकदम फ्री है जनाब ! चाहे जितने लोग आये, चाहे जितना खाए पेट भर के | माता का प्रसाद है ये | एक बात बताऊ?"
यह तनिक धीमे स्वर में बोला, "बहुत से लोग तो इसी लालच में घसे चले आते है की चलो, बढ़िया भोजन तो मिलेगा | "
"सत्संग की तरफ ध्यान दो" तभी एक सुन्दर सा युवक मेरे निकट से गुजरते हुए बोला "प्लीज़! बाते मत करो"
मैंने उसकी पीठ घूरते हुए अनिल से पूछा, "यह बंदा कौन है, भैया? "..."इसका नाम ......." अनिल एकदम धीमे स्वर में बोला, 'संजीव गुप्ता है" देवी माँ के चरणों का सेवादार |
निरंतर.........
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