Monday, August 22, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 16



तभी सीढ़ीया चढ़ते हुये 'मनमोहन गुप्ता' दिखाई दिये ! सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने, तनिक भारी भरकम शरीर और सर पर सफ़ेद चकाचक गांधी टोपी |

मुझे देखकर उनके चेहेरे पर हैरानी  के भाव उमरे, "अरे ! तुम अभी तक इधर ही बैठे हो| कमर में दर्द होने लगा जायेगा ! क्या समझे  ? चलो मेरे साथ |"


में उनके पीछे पीछे सीढिया  चढते हुए फर्स्ट फ्लोर वोटिंग हॉल में प्रविष्ठ हुआ |

एक बड़े से सिनेमा हाल जितने ऊँचे और भव्य सजावट से सज्जित वेटिंग हॉल  में लगभग बीस आदमी बैठने लायक आरामदायक सोफा लगाये गये थे | सामने एक सिनेमा हॉल जैसी बड़ी व्हाइट स्क्रीन लगी थी | जिसके आगे एक बड़ा सा LCD टीवी  सेट भी था | एक तरफ परम श्रद्धेय 'श्री राधे शक्ति माँ' की भव्य फोटो सुसज्जित थी | छत पर विशाल गोलाकार सीनरी थी जिसमे नीले रंग में तारो जैसी  कुछ चमक आसमान में रात्रि  का भ्रम पैदा कर रही थी |

"बैठो....? " मनमोहन गुप्ता एक सोफा में लगभग पसर से गये,' बैठो , भाई !"

मै तनिक संकुचते  हुए उनसे थोडा फासला बनाते हुए हौले से बैठ गया | एक लड़का फ़ौरन पानी लेकर हाजिर हुआ | मैंने तुरंत पानी का गिलास लिया | में काफी देर से इसकी आवशकता महसुस कर रहा था |

"क्या पिओगे ? ' मनमोहन गुप्ता ने अलसाये स्वर में पूछा,"चाय ? कॉफ़ी ?"

"कॉफ़ी"  मैंने पानी पीकर खाली गिलास लड़के की तरफ बढाया, " बिना शक्कर की!"

उन्होंने लड़के की तरफ देखा | लड़के ने समज जाने वाली मुद्रा में सर हिलाया | और बाई तरफ स्थित दरवाजे से बाहर निकल गया |

मनमोहन गुप्ता ने मेरी तरफ देखा और हौले से मुस्कराये, "कविताओ में रूचि है तुम्हारी?"

'हाँ", मैंने सिर हिलाया |

"मैंने बहुत सी कविताए लिखी हैं..............." वो तनिक गंभीर स्वर में बोले|

'अनेक कवी सम्मेलनो  में शिरकत कर चूका हूँ | मेरे कविताओ के संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं !"

मैंने प्रसंशा और हैरानी  भरे निश्चित भाव से उनकी तरफ ताका |

"अब मेरी नई कविता के कुछ अंश सुनाता हु ! सुनोगे ?"

"'शोर !"  मै फ़ौरन बोला,"क्यों  नहीं !"

मनमोहन गुप्ता ने कुछ क्षण छत्त की तरफ ताका और फिर विशिष्ट अंदाज में बोले,' माँ  जो  नही तो कुछ भी नही,  बस माँ  से घर होता है | "

'वाह !' मैंने  दो-तीन बार ढोढी को छाती की तरफ झुकाया ,' माँ  से घर होता है !"

"सच मनो बेटा |" मनमोहन गुप्ता का स्वर भारी हो उठा, "जब जब दर्शन वाला शनिवार आता है, हमारा पुरे परिवार में जैसे उत्साह उमंग और हर्ष का समंदर लहराने लगता है | देवी माँ  के चरण जब से हमारे घर में पड़े हैं, हम तो धन्य हो गये है | हमारा पूरा परिवार अपने आपको भाग्यशाली समजता है देवी माँ जी की अनंत कृपा हम पर दिन रात बरसती रहती है ! हर पल हर घडी जैसे त्यौहार का सा माहौल बना रहता है ! रोजाना दूर दराज से अनेक माँ के दर्शन के पुजारी आते ही रहते हैं ! घर आये अतिथियों  की सेवा में घर के नौकर चाकर से लेकर सभी सदस्य बिड से जाते है | बाहर से आनेवाली संगत के आलावा भी यहा के बहुत से परिवार देवी माँ  के विशेष दर्शन को आते रहते हैं,  हर वक्त मेला सा लगा रहता हैं ! बहुत अच्छा लगता हैं |"

मैंने सिर हिलाया |

'कई बार -----' मनमोहन गुप्ता सामने घूरते हूए बोले , " देवी  माँ  जी बाहर चले जाते है ! अभी कुछ दिन पहेले दो महीने के लिये पंजाब गये थे, उससे पहेले London - Switzerland  आदि  को स्थानों पर अपने भक्तो को आशीर्वाद देने गये थे | जब देवी माँ यहाँ नही होते, तो यूँ  लगता है जैसे सारा संसार सुना सुना है | हलाकि घर में परिवार के सभी सदस्य होते है | नौकर, सेवादार, चौकीदार, वॉचमन, रोसाईये ------ वैसे के वैसे ही पुरे के पुरे - मगर ------"

उन्होंने एकदम खाये से स्वर में कहा 'मगर लगता है घर सुनसान है | कोई रोनक नही | कोई चहल-पहल नही | सभी लोग एक मशीन की तरह अपनी अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे होते हैं | सच पूछो तो दिल लगता ही नही | एक रुखी रुखी बैचनी जैसे हर वक्त घेरे  रहती है ! कोई धंदा सूझता ही नही | कुछ करने को ही नही | न खाने में मन लगता है न कही जाने पर ! और तो और सोना भी ठीक ढंग से नही होता ! समझ सकोगे मेरे फिलिंग को?"

में क्या बोलता ?

"इसलिये............."मनमोहन गुप्ता ने सर को तनिक नचाते हूए कहा, "मेरी नई कविता का शीर्षक है ...............माँ  से घर बनता है ! '

"बहुत सुन्दर |" मैंने ताली बजाने का उपक्रम किया,' अब समझ में आता है भाई साहब | जब ह्रदय में कोई उथल पुथल होती है तो नई कविता का सृजन होता है | क्या बात कही है | माँ  से घर बनता है |"
"माँ  जो  नही तो कुछ भी नही ....................

उन्होने हाथ अंदाज से लहराया, "माँ  जो   नही .............."

"माँ  जो  नही तो कुछ भी नही,
सूना सूना सब कुछ लगता,
इक खालीपन सा हर वक्त ही
उदास मन से उफनता है .......
माँ से घर बनता है |"


(निरंतर ...)

Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |

आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में 
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in

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