Part 13
मैं अभी छोटी माँ और टल्ली बाबा यानि गौरव कुमारजी के बारे में सोच रहा था की दर्शन करने वाली संगत ऊपर की और बढ़नी शुरू हो गयी और वे दोनों महिलाये मोड़ मुड़ने के बाद दृष्टि से ओंज़ल हो गई |
तभी डार्क- ग्रे कलर का सफ़र सूट पहने, सर पर लाल रुमाल बंधे, लगभग ६०-६२ वर्षीय एक सेवादार मेरी बगल में आकर उकड़ बैठ गया . उसने दोनों हाथो से अपनी पिंडलिया दबाने का उपरक करते हुए मेरे तरफ एक फीकी मुस्कान के साथ देखा |
"लगता है थक गए हो अंकल !" मैंने हाथ आगे बढ़ाये, "में पाँव दबा दू?"
"अरे नहीं यार !" उसने मेरी कालिया थमते हुए कहा, " में तो बस यूँ ही तुम्हे बैठे देख यहाँ आ गया .. दर्शन के लिए उपदर क्यों नहीं जा रहे हो?"
"वो क्या है ना अंकल!" मैंने ठोढ़ी खुजलाते हुए कहा, "थोड़ी भीड़ कम हो जाये तो खुले दर्शन करना चाहता हूँ | साथ में माता की चौकी का आनंद भी ले रहा हूँ | आप कब से सेवा कर रहे हो?"
"याद नहीं...." वह सोचने लगे, "शायद पांच साल से ... छह भी हो गये होंगे|
"अंकल" मैंने उनके निकट सरकते हुए तनिक धीमे स्वर में पुछा, "मेरी कुछ पर्सनल समस्या है. दो 'माँ की भक्त' यहाँ आपस में छोटी माँ के बारे में चर्चा कर रही थी... आप थोडा विस्तार में बता सकते है 'छोटी माँ' के बारे में?"
"देखो बेटे" वह आत्मीय स्वर में बोले, "निचे लगे किसी भी होअर्डिंग पर आपको टल्ली बाबा यानि गौरव कुमार का मोबाइल नंबर मिल जायेगा | तुम गौरव कुमार से मुलाकात का समय मांग लो. 'छोटी माँ' परम श्रधेय पूज्य राधे माँ का ही एक स्वरुप है | आपको यहाँ या तो सुबह 6 बहे तक या फिर शाम को 6 -7 बजे .. जो भी टाइम आपको मिले, आना है | 'छोटी माँ' का आसन एक अलग कमरे में लगता है. वह सिवाय 'छोटी माँ' के दूसरा कोई भी नहीं होता | आप जो भी पूछना चाहे, वह बात आप 'छोटी माँ' से कहिये. खुल कर कहिये, तुम्हरे द्वारा कही बात या तुम्हारा परिचय अगर आप छाए तो एकदम गोपनीय रहेगा | यानि की आप की तकलीफ को 'छोटी माँ' सुनेगी | गौर से सुनेगी | और तुम यकीं करो, काफी हाड तक तो 'छोटी माँ' ही तुम्हारी समस्या का निवारण कर देगी | उसके बाद भी तुम्हारे बार 'देवी माँ' तक पहुचेगी |"
"यह 'छोटी माँ' के वचन कब कब होते है?" मैंने जिज्ञासा भरे स्वर में पुछा |
"यह तो संगत पर निर्भर है... " वह कंधे उचका कर बोला, "अगर संगत की संक्या अधिक रहती है तो हफ्ते में दो बार, नहीं तो एक बार तो निश्चित है ही |"
" .. 'छोटी माँ'.. कुछ प्रवचन या सत्संग करती है?" मैंने तनिक गर्दन को तिरछा किया |
" 'छोटी माँ' प्रत्येक आये हुए भक्त की बात सुनती है |" वह थोडा तरंतुम भरे स्वर में बोला, " देखो बच्चे | आज जिसे देखो, वह अंदर ही अंदर किसी न किसी बात से परेशां है | किसी की परेशानी बड़ी है तो किसी की छोटी | बेटा, चेहरे पर मत जाना | हर खिला हुआ, चमकता हुआ चेहरा दिखने में तो यूँ लगेगा की यार इस आदमी के जैसा सुखी और खुशहाल शायद कोई नह है | मगर अंदर के किसी कोने में कही न कही एक टीस, एक गम, एक निराशा उसे निरंतर कचोटती रहती है | बेटा ! एक बात और ज़िन्दगी में एक बात अपने दिमाग में कील की तरह गाडलो | अपने दुःख, अपनी तकलीफ, कभी अपने लगने वाले लोग, को मत बताना | अपने रिश्तोदारो सगेवाले, को तो हरगिज़ नहीं बताना |सुनो, ये दुनिया ऐसी है बेटा | तुम्हारा कोई कितना भी नजदीकी क्यों न हो, 70 % लोगो को आपकी तकलीफ से कुछ लेना देना नहीं होता | बाकि बजे 30 % आपकी तकलीफ सुनकर ऊपर से सहानभूति जताएंगे मगर भीतर ही भीतर पुलकित होंगे की ठीक हुआ, इसके साथ ऐसा ही होना चाहिए था |
में मंत्रमुग्ध उसका चेहरा तक रहा था |
"अपनी 'छोटी माँ' से कहो |" वह पुरजोर शब्दों में बोला, " ..'छोटी माँ' न केवल आपकी तकलीफ को गौर से सुनेगी बल्कि उसके निवारण का रास्ता भी बतायेंगी | और फिर जब आपकी बात 'छोटी माँ' तक पहुँच गयी, समझो 'देवी माँ' तक पहुँच गयी |"
"फिर उसके बाद.............. " मैंने उसकी आखों में झाँका |
"एक तारा बोले... " वह जोर से हँसा, " फिर उसके बाद 'देवी माँ' जाने भाई | और जब 'देवी माँ' पर विश्वास है.. भरोसा है.. तो बाकि क्या रह गया ? मौजा ही मौजा |"
वह टल्ली बजने लगा |
(निरंतर .... )
Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्त के अनुभव को कलमबदध किया हैं | माँ की लीलाये आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |
आप अगर अपने अनुभव, 'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं, तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रत्रिक्रिया की प्रतीक्षा में
Sanjeev Gupta
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