Monday, September 5, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 19






परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


एकाएक मुझे जोरों से भूक सताने लगी | हालाकी मैं सीधे तीन माला पर जाकर भंडारा ले सकता था, परन्तु मैंने निश्चित किया की पहले ‘श्री राधे शक्ति माँ' के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लूँगा, फिर भंडारे से प्रशाद ग्रहण करूँगा |


मैं फर्स्ट फ्लोर पे स्थित वेटिंग हॉल से निकल कर सीढियों की तरफ बढा | वहा मौजूद दर्शनों की कतार में खड़े भक्तों ने जोर से जयकारा लगाया | मैंने ऊपर जाने के लिए जैसे ही सीढ़ी के तरफ कदम बढ़ाये, लाल ड्रेस पहने एक महिला सेवादार ने हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में कहा, “जय माता दी, भगत जी ! कृपया लाइन से आइये |"


लाइन में खड़े एक दर्शनार्थी ने तनिक आगे सरक कर मेरे लिए जगह बनाई | मैं स्वयं को लाइन में अड़जस्ट किया | हलाकि मेरे पीछे खड़े आढे से व्यक्ति के चेहरे पर कडवाहट के भाव प्रकट हुए मगर मैंने जैसे ही क्षमा -याचना की दृष्टि से उनकी तरफ देखा | उसने मेरा कन्धा थपथपाकर ‘जाने दो’ जैसी अदा से हाथ झटका |


“आप कहाँ से आये है, मालिक ?” मैंने आगे खड़े सज्जन से पुछा |



राजौरी गार्डेन …” उसने मेरी तरफ गर्दन घुमाई .. “दिल्ली से … और आप ?”


“मैं यही से हूँ ….” मैंने हसकर कहा , “आप कब आये दिल्ली से?”


“आज ही आया हूँ …” वह व्यस्त स्वर में बोले, “और सुबह जल्दी के फलाइट से वापिस जाना है ! ‘देवी माँ ’ के दर्शन करना ही मेरा ख़ास काम है, जिसके लिए आया हूँ |”


“आप का नाम जान सकता हूँ ?” मैंने सहज भाव से पुछा|


“ राजीव बंसल !” उसने एक सीढ़ी ऊपर चढ़ते हुए कहा, “ ठेकेदारी करता हूँ ! सच पूछोगे तो मैं आज जो भी हूँ, ‘देवी माँ’ के बदोलत ही हूँ |”


मैं भी एक सीढ़ी आगे बढ़ा |


“आज से दस साल पहले मैं कुछ भी नहीं था | माँ-बाप ने शादी कर दी | एक कपडे की दुकान पर सिर्फ तेरहसौ (1300) महीने के नौकरी करता था | घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता था | ऊपर से किराये के मकान में रहते थे | मकान क्या? एक कमरा कह लो, उसी में किचन , बाथरूम और बेडरूम | मेरे माँ -बाप पलंग पर सोते थे , हम निचे गद्दा बिछाते थे | तंगी और आभाव से  घिरे जैसे तैसे जिंदगी घिसट रहे थे | फिर मुझे एक बंदा दिल्ली में स्थित ‘राधे माँ ’के भवन में ले गया | मैंने वहा ‘देवी माँ ’ से अपनी कंगालीसे छुटकारा पाने की गुहार की | तीन –चार महीने तक मैं लगातार ‘श्री राधे माँ’ भवन जाता रहा |”


राजीव बंसल भावुक हो उठा |

“मेरा किराये का रूम बहुत ही खस्ता हाल में था ? पोलिस्टर टूट टूट कर गिर रहा था | फर्श में जगह जगह गद्दे थे | मैंने मकान मालिक से मुरममत करवाने  के लिए बारबार मिन्नत की | एक रात मैं ‘देवी माँ ’ भवन में जाकर रोने लगा | मैंने ‘देवी माँ ’ से एक ही प्रार्थना की, माँ मुझे रास्ता दिखाओ, सुबह उठा तो मकान मालिक आया | उसने कहा की उसके पास टाइम नहीं है, मैं स्वयं ही रूम की मरममत करवा लूं , जो खर्चा आयेगा मकान मालिक मुझे दे देगा | यही टर्निंग पॉइंट था | ‘देवी माँ’ ने मेरी प्रार्थना काबुल की | मैंने दुकान से तीन दिन की छुट्टी ली | घर रेपैरिंग का मटेरिअल इकखटा किया और मिस्त्री बुलाकर ले आया | लेबरकी जगह मैं खुद  ही काम कर रहा था | मैंने इस प्रकार मजदूरी की दिहाड़ी बचने की भी सोची | मैंने बड़ी तबियत से रूम की टूट -फुट ठीक की | मेरे पडोसी ने जब काम देखा तो बोला, ‘यार , मेरे रूम की भी मुरामत करनी है| मैंने मटेरिअल , मिस्त्री की दिहाड़ी आदि का बजेट बनाया और फिर  अपनी बचत जोड़कर उसे बजेट दिया | वह मान गया | उसके बाद गल्ली में पांच - सात मकानों की मरमत का काम मिला | मेरे काम की तारीफ़ होने लगी . मैंने कपडे की दुकान वाली नौकरी छोड़ दी | मैं नियमित रूप  से दिल्ली वाले ‘राधे माँ ’ भवन में जाकर हाजरी लगाता था | ‘देवी माँ ’ की आसिम –आपर कृपा दृष्टि हुई | मैंने ठेकेदार बन गया | पहले मरममत का काम मिलता था | अब अन्य मकान और कोठी निर्माण का काम भी मिलने लगा | मैं पूज्य 'श्री राधे शक्ति माँ' का बार - बार धन्यवाद करता हूँ | उनकी मेहेरबानी हुई | आज दिल्ली  में जगह जगह प्रोजेक्ट्स चल रहे है | कभी इस साईट पर तो कभी उस साईट पर भागना पड़ता है | लेकिन फिर भी …..” राजीव बंसल ने , “फिर भी ” पर जोर दिया | “फिर भी यहाँ नियमित रूप से माँ की हाजरी में आता हूँ | कितना भी बीसी शेडुअल क्यूँ न हो, दोपहर की फलाइट पकड़ता हूँ | यहाँ आता हूँ , ‘देवी  माँ ’ के दर्शन प्राप्त करता हूँ, और सुबह की जल्दी वाली फलाइट से वापिस दिल्ली लौट जाता हूँ | ‘देवी माँ ’ का आभारी हूँ | भाईसाहब , सब कुछ मिल गया है | अब तो एक ही तम्मना है , टूटे चाहे सारा जग टूटे , ‘देवी माँ ’ का द्वार न टूटे ”


राजीव बंसल एकदम विभोर भाव से ताली बजाकर ‘श्री राधे माँ ’ का  नाम जप रहा था | उसके धीमे धीमे गाने की आवाज़ मेरे कानो में मिश्री घोल रही थी |


एक –दो करके हमारी कतार निरंतर सिधिया चढ़ते हुए आगे बढ़ रही थी |हम दूसरी मंजिल पहुंचे …|

(निरंतर )





 


Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |


आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में -
Sanjeev Gupta
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Wednesday, August 31, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 18


परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


'श्री राधे माँ भवन' के फर्स्ट फ्लोर स्थित विशाल वेटिंग हॉल में श्री मनमोहन गुप्ता जी के संग आया था | उन्होंने लड़के को मेरे लिये कॉफ़ी लाने का इशारा किया और स्वयं पसर हल्की  झपकी लेने लगे | तभी दुबई से हिम्मत भाई एअरपोर्ट से सीधे यहाँ चले आये थे | कॉफ़ी पिने के दौरान उन्होंने अपनी आप- बीती सुनाई | अपने बचपन के लंगोटिया यार और बिजनेस पार्टनर के दगा  करने के बावजूद कैसे वे 'देवी माँ' की कृपा से अपने मुकाम पर पहुंचे | वाकई प्रेरणादायक प्रसंग था | 

"चलो .................." हिम्मत भाई ने तपाक से हाथ मिलाते हुए कहा, " मैं 'देवी माँ' की हाजरी लगाने जा रहा हूँ| उसके बाद भंडारा लूँगा | बहुत भूख लगी है ! तुम चल रहे हो ??"

"आप चलो हिम्मत भाई..............'  मैंने अंगड़ाई लेने का उपक्रम किया,' में थोडा ठहेरकर ...............'

हिम्मत भाई ने दरवाजे के पास पहुँच कर अभिवादन करते हुए हाथ हिलाया | तभी एक महिला ने वेटिंग हॉल में प्रवेश किया | हिम्मत भाई ने तनिक पीछे हटकर उन्हें रास्ता दिया और फिर स्वयं दरवाजे से बाहर निकल   गये | 

अभी अभी हॉल  में प्रविष्ट हुई महिला की गोद में लगभग तीन -साढ़े तीन साल की बच्ची थी,  जो शायद सोने के लिये कसगसा रही थी और वह महिला उसे हौले हौले थपथपा रही थी |

श्री मनमोहन गुप्ता एकाएक उठे | हथेली  के पिछले भाग से मुह पोछा और फिर खेद भरी मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा | मैंने उन्हें सो जाने का इशारा किया | उन्होंने इन्कार में सर हिलाते हुए निचे चल रही 'माता की चौकी' में जाने की इच्छा जतलाते हुए  एक हाथ पाजामे की जेब में ढूसा और दरवाजे से निकल गये |

आगंतुक महिला ने सोफे में बच्ची को लिटाया और स्वयं  पास बैठे गई | उसे थपथपाते हुए मेरी तरफ देख कर बोली, " जय माता दी | "
"जय माता दी | "  मैंने बच्ची पर एक निगाह डाली, " बहुत प्यारी बच्ची है | "

" देवी माँ ने दी है |"  वह पूर्ववत थपथापते हुए श्रद्धा भरे स्वर में बोली," हमने इसका नाम भी राधिका रखा है | वो क्या है ना,  दरअसल  इसका सोने का टाइम हो गया है | बच्ची है ना ! नींद तो आयेगी ही |"
मैंने सिर हिलाया |


" आपने दर्शन किये..............." उसने भवे हिलाकर पूछा | "मैंने अभी दर्शन के लिये ही जा रही थी वो क्या है ना इसी बच्ची को आशीर्वाद दिलवाना था | भाई साब ! बड़ी मिन्नत करके, बहुत मांग-मांग कर मैंने देवी माँ से कन्या ली है |  मेरी ससुराल वाले तो बहुत चिल्लाते थे कि क्या सारा दिन बिटिया बिटिया की रट लगाये रहती हो | पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ी रही | यह मेरी पहली संतान है | वो क्या है ना, हर कोई पहली संतान के रुप में बेटा ही मांगता है | मैंने हमेशा से यही  इच्छा रखी कि मेरे यहाँ पहली बेटी ही हो | क्यू भाई साहब ? बेटियों में क्या बुराई है |"

"बेटिया ही नहीं होगी.............."मै अपना ज्ञान बधारने लगा, " तो माँ  कहा से होगी | बहिन कहा से होगी | बीवी कहा से होगी | मामी कहा से होगी | बेटी ही तो सृष्टि का आधार है | "

"वो क्या है ना ..............."  महिला का स्वर उत्साह से भर गया, "लोग बेटा बेटा कर के अपने बेटो को सर चढ़ा लेते है और फिर वही बेटे अपने माँ बाप की दुर्गति करते देखे गये है | कन्याए तो बेचारी सदा अपने ससुराल में भी माँ बाप की खैर मांगती रहती है | अब 'देवी माँ' को ही देख लो | वो भी तो किसी की बेटी है ही ना | कैसे लाखो लोगोका कल्याण कर रही है | ना कुछ चढावा मांगती है | ना कुछ और मांगती है | बस हमेशा देती ही रहती है | "

मैंने सहमति में सर हिलाया|


"वो क्या है न भाई साहब...?" महिला ने स्वर थोडा धीमा किया, " हर किसी को मुह माँगा तो मिलता नहीं है न | मुकद्दर भी तो आखिर कोई चीज़ है | अपनी मुकद्दर में लिखा है स्कूटर और आप होंडा- सिटी के लिए शिकायत करे की 'देवी माँ' स्कूटर क्यों दिया, होंडा सिटी क्यों नहीं दी?? यह कोई बात हुई? ज़रा यह भी तो सोचो कुछ लोगो के पास तो स्कूटर क्या सायकल तक भी नहीं है| फिर? 'देवी माँ' से शिकायक क्यों? देखो भाई साहब ! वो क्या है न, एक  स्कूल में  किसी क्लास में 80 बच्चे है | उन  80 बच्चो में से एक बच्चा फर्स्ट क्लास ला रहा है | 95 % ला रहा है | और उसी क्लास में एक बच्चा फ़ैल हो गया है |  तो क्या कहोगे ? टीचर  ने कुछ गड़बड़ किया | अगर टीचर ने गड़बड़ किया है तो एक बच्चा फर्स्ट क्लास क्यों आया?  वो क्या है न भाई साहब, काबिलियत भी तो कुछ होती है | टीचर के पढ़ने में मीन मेख मत निकालो, अपनी मेहनत , अपनी लगन को भी देखो | 'देवी माँ क्या दे रही है और उसको इतना दे रही है, मेरे को कम  क्यों दे रही है - यह मत देखो | यह देखो की श्री  राधे  शक्ति माँ' के दरबार  से कुछ मिल  तो रहा है | खाली तो नहीं जा रहा ना | क्या में ठीक कह रही हूँ?"

मैंने सहमति में सर हिलाया |


तभी एकाएक बच्ची उठकर बैठ गयी |
महिला ने इशारे से बच्ची को सो जाने को पुछा | बच्ची ने इन्कार में दाए बाए सर हिलाया |

"दर्शन के लिए चले? " महिला ने स्नेहिल भाव में पुछा | 

बच्ची ने दोनों बहे उठाकर माँ की तरफ देखा |

महिला ने बच्ची को गोद में उठाया, मेरी तरफ देखकर अत्यंत धीमे स्वर में "जय माता दी" कहा और तेज कदमो से चलती हुई दरवाजे से
बाहर निकल गयी |

(निरंतर ....)




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Thursday, August 25, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 17

 
परम श्रधेय श्री राधे शक्ति माँ को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ की जो कहूँगा सच कहूँगा, सच के सिवा कुछ न कहूँगा / - सरल कवी


मनमोहन गुप्ता बात करते करते थोडा और पसर गये | थकान के कारण उनकी झपकी लग गई लगती थी |

एक लड़का कॉकी का कप दे गया |

तभी वेटिंग हॉल मे एक व्यक्ति प्रविष्ट हुआ जिसके हाथ मे बड़ा सा ट्रवेलिंग बैग था | बैग पर लगे स्टीकर चुगली कर रहे थे की वह किसी फ्लाइट से आया था | उसने एक साइड मे बैग को रखा | उंध से रहे मनमोहन गुप्ता के पाव छुने का उपक्रम करने के बाद मेरी बगल मे बैठते हुए उन्होंने कॉफ़ी देकर लौट रहे को इशारे से बुलाया | '" बेटा ....." आगुन्तक सज्जन ने बड़े थके से स्वर में  कहा ' एक कप चाय मुझे  भी मिलेगी क्या ? "

"चाय नही कॉफ़ी है ....|" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया "वह भी बिना शक्कर की | यही ले लो |"

"अरे .... " उन्होंने अपनत्व से मेरा हाथ पीछे ठेला "आप पियो | बेटा | मुझे भी कॉफ़ी ला दो ! और सुनो ! उनकी कॉफ़ी की बची हुई शक्कर मेरी कॉफ़ी मे डाल देना | मे तेज शक्कर पीता हु भाई ! "

लड़का गेट से बाहर निकल गया | आगंतुक ने जेब से रुमाल कर चेहरा पोछा |

"कही बाहर से ....... " मैंने यूँही बात शुरू की, "सीधे सही चले आ रहे हो |"

"हां |"  वह सोफे की पीठ पर सर टिकते हुए थके स्वर में बोला, "दुबई से आ रहा हूँ | एक तो फ्लाइट लेट, ऊपर से मुंबई का ट्राफिक ........तौबा! तौबा!"


मैंने सहानभूति भरे भाव से सिर हिलाया | निचे हॉल मे कोई नया भजन गायक पुरे जोश के साथ अपना कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था | उसके गाने की धीमी धीमी आवाज अच्छी लग रही थी |

"मेरा नाम हिम्मत भाई  हैं |",  वह सज्जन मेरी तरफ देखते हूए बोले, "आपका परिचय ?"

"मेरा नाम भगत हैं ....." मै कॉफ़ी का घुट भरने के बाद तसल्ली के साथ सिर हिलाकर बोला, "देवी माँ  के दर्शनो के लिये आया हूँ|"

"मै भी देवी माँ  के दर्शन के लिये सीधा दुबई से चला आ रहा हूँ ........." हिम्मत भाई ने मेरी आँखों  में झाँका " 'देवी माँ' की अपार कृपा हुई जो मै आज फिर से खड़ा हो गया हूँ  भगत जी, वरना एक बार तो मै सड़क  पर ही आ गया था |"

लड़का कॉफ़ी दे गया | हिम्मत भाई  ने कृतज्ञ भाव से लड़के को धन्यवाद दिया और फिर कॉफ़ी का एक बड़ा सा 'घूंट' भरा |

"मेरा पालघर में स्टील के बर्तन बनाने का कारखाना हैं ............' हिम्मत भाई स्वयं ही बोलने लगे,' बहुत बड़ा बिजिनेस था मेरा | मैं एक्सपोर्ट का भी धंदा करता हूँ  | दुबई...बर्लिन...शारजाह में मेरे स्टील के बर्तन बहुत एक्सपोर्ट होते थे | मेरे एक बचपन का पडोसी और साथ पढ़ा एक दोस्त 'नवीन अरोड़ा' जो मेरा बहुत करीबी था .... अक्सर मुझसे धंदे में साथ रखने के लिये रिक्वेस्ट किया करता था | मैंने दोस्ती का लिहाज करते हूए दुबई में अपना एक ऑफिस खोलकर उसे वहा का इंचार्ज बना दिया | वह और उसका परिवार तो जैसे  मेरे पाव धोकर पिने को राजी थे | दुबई में पहेले साल नवीन अरोड़ा ने काफी मेहनत की और पहेले साल से दुगुने आर्डर भिजवाये | मैंने प्रोडक्शन बढ़नी शुरू  की | मै यहा रात दिन बिजी हो गया और नवीन अरोड़ा वहा पर | मै लगातार माल भेजता जा रहा था | उधर नवीन अरोड़ा खूब मेहनत कर रहा था ....."

हिम्मत भाई  ने एक घुट में पूरी कॉफ़ी खत्म की और कप रख दिया |

"मै प्रोडक्शन के लिये उधार में  रॉ मटेरिअल उठाता रहा, माल भेजता रहा " हिम्मत भाई  का स्वर एकदम कडवा होने लगा, "लेकिन मै बेवफुफ़ की औलाद, पुरे तीन साल तक इस बात से लापरवाह रहा की वहा से पेमेंट की कोई चर्चा तक नहीं की! और उसने भी नहीं की ! मेरी गुडविल के कारण रॉ मटेरिअल उधारी पर देने वाले डीलरो ने जब पेमेंट के तकाजे शुरू किये तो मैंने नविन अरोड़ा को पेमेंट भेजने को कहा ! "

 हिम्मत भाई कुछ क्षण खाली कप को घूरते रहे एकाएक मेरी तरफ देखने के बाद वह गंभीर स्वर में बोले  " दुबई से नविन अरोड़ा ने हा भाई आज भेजता हूं, कल भेजता हूं से कुछ दिन निकाले! और फिर एकाएक उसने फोन उठाना बन्द कर दिया !

में अवाक मुंह बाये उसकी तरफ तक रहा था !

" नवीन अरोड़ा ने मेरा फोन लेना बंद कर दिया.........' हिम्मत भाई एक एक शब्द चबाते हूए बोले, " बल्कि मेरे से हर प्रकार का संपर्क ही बंद कर दिया | मैंने दो महीने तक बहुत कोशिश किया | उधर लेनेदरो के तकजो ने  मेरा जीना
  हराम कर दिया | फैक्ट्री में लेबर तन्खवाह मांग रहे थे | बिजली का बिल इतना बढ गया था की आज कनेक्शन कटा कि कल कटा | मतलब ये भगत जी में पैसे पैसे का मोहताज हो गया | और उधर नवीन अरोड़ा ने साल में मुझे सैतीस करोड़ का चुना लगा दिया | कितने का .................?"

'सैतीस  करोड़ ड ड ड ड ड  ' मेरे मुह से बोल नही फुट रहे थे |

"सैतीस करोड ! " हिम्मत भाई  ने दो - तींन बार सिर हिलाया, "उसने अपने परिवार को दुबई में बुला लिया | अपना अलग से ऑफिस खोल लिया | और में सड़क पर आ गया |"

उसकी आँखे भर आई |

'मेरा बंगाल गिरवी | मेरी फ़क्टरी गिरवी | गाड़ी ऑफिस सब बिक गई | परिवार में मेरे हालत यहा थी कि हम रोटी को मोहताज हो गये | भगत जी ! मैं पागलों जैसी स्थिति में पंहुच गया था | न नहाने कि सुद्ध न खाने का होश | कभी कबार शोकिया एकाध पैग लगाने वाला में हिम्मत भाई अब बेवडा हिम्मत भाई  के नाम से मशहूर हो गया | मेरे सभी पार दोस्त - सगेवाले मुझसे से बात तक करने से कतराने लगे | लोग मुझे देखेते ही दूर भागते कि उधार ना मांग ले | अकेला बैठा अपने आप से बाते करता था | लोग समझने लगे हिम्मत भाई का दिमाग सटक गया है | यहा हालत गई थी मेरी और मेरे परिवार की | मेरी घरवाली जो बिना गाड़ी के चलती नही थी,   नौकर चाकरो की लाइन लगती थी घर में...............मगर अब मेरी घरवाली टिफिन बनाकर लोगो के घरो में पहुचाती थी और परिवार का गुजरा चला रही थी |

मै सहानुभति भरे भाव से उसे तक रहा था "तभी किसी ने मेरा उद्दार करवाया|" हिम्मत भाई का स्वर कोमल होने लगा, "मुझे इधर -उधर भटकने से बचाने के लिये वह 'देवी माँ'  के दर्शन के लिये ले आया | सच पूछो तो मै टाइम - पास भाव से यहा चला आया | लाइन में लगा | रुटीन में दर्शन किये भंडारा लिया और वापिस चला | मगर मेरे मन के किसी कोने में से एक आवाज आई कि हिम्मत भाई.......तेरी दुर्गति दूर होगी तो यही होगी | भगत जी | दुसरे दिन सन्डे था | मै  सुबह - सुबह 'श्री राधे माँ' भवन के सामने  फुटपाथ पर बैठे गया और मन ही मन प्रार्थना करने लगा | मुझे नही मालूम,  मै क्या प्रार्थना कर रहा था | मगर कर रहा था | अब मेरा रुटीन बन गया | मै यूही टहलते हूये आता,  राधे माँ  जी के  बाहर लगे होर्डिंग को प्रणाम करता और काफी देर तक फूटपाथ  पर ही बैठा रहता |"

हिम्मत भाई की आप बीती सुनते सुनते मै द्रवित हो उठा था |


"फिर क्या हुआ?" मैंने व्यग्र स्वर में पूछा |

"चमत्कार !"  हिम्मत भाई ने हाथ झटका, "उसी फूटपाथ पर मेरा एक पुराना व्यापारी मिल गया | एक वक्त था जब वह मुझसे थोडा -थोडा माल उधार लिया करता था | उसने मुझे पहचाना | मुझे गले से लिपटा लिया | मालूम पड़ा कि वह आज बहुत बड़ा बिजनेस मैन बन गया | था | उसने मेरी कहानी सूनी | हौसला दिया | मुझे बिना इंटरेस्ट  के रक्कम देकर फिर से फैक्टरी शुरु करने को हिम्मत दी | भगत जी, पूज्य 'राधे शक्ति मा' की अनुकम्पा से मेरी गाड़ी फिर पटरी पर आ गई | मेरा व्यापार फिर संभाला | मेरी दारू वारू सब छुट गई | मै नियमित रूप से यहा 'देवी माँ'  के दर्शन को आने लगा | मेरा बंगला जो गिरवी पड़ा था, उसे छुड़ाया | फैक्टरी भी गिरवी पड़ी थी,  उसे छुड़ाया | मैंने फिर से दुबई में ऑफिस खोला | मेरा बिजनेस धीरे धीरे उसी पोजीशन में लौट आया है जैसे आजसे सात साल पहले था | मै दुबई से  फ्लाइट पकड़ कर पहले यहा आया हू | पहले देवी माँ की दया दृष्टी पाउँगा, फिर भंडारा लेकर घर जाऊंगा |"

मैंने सहज स्वर में पुछा , "और.............उस नवीन अरोड़ा ............तुम्हारे पार्टनर ...............उसका क्या हुआ?"

हिम्मत भाई ने छत की तरफ देखते हूए कहा," देवी माँ उसे सदबुद्धि  दे !"

(निरंतर.............)

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Monday, August 22, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 16



तभी सीढ़ीया चढ़ते हुये 'मनमोहन गुप्ता' दिखाई दिये ! सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने, तनिक भारी भरकम शरीर और सर पर सफ़ेद चकाचक गांधी टोपी |

मुझे देखकर उनके चेहेरे पर हैरानी  के भाव उमरे, "अरे ! तुम अभी तक इधर ही बैठे हो| कमर में दर्द होने लगा जायेगा ! क्या समझे  ? चलो मेरे साथ |"


में उनके पीछे पीछे सीढिया  चढते हुए फर्स्ट फ्लोर वोटिंग हॉल में प्रविष्ठ हुआ |

एक बड़े से सिनेमा हाल जितने ऊँचे और भव्य सजावट से सज्जित वेटिंग हॉल  में लगभग बीस आदमी बैठने लायक आरामदायक सोफा लगाये गये थे | सामने एक सिनेमा हॉल जैसी बड़ी व्हाइट स्क्रीन लगी थी | जिसके आगे एक बड़ा सा LCD टीवी  सेट भी था | एक तरफ परम श्रद्धेय 'श्री राधे शक्ति माँ' की भव्य फोटो सुसज्जित थी | छत पर विशाल गोलाकार सीनरी थी जिसमे नीले रंग में तारो जैसी  कुछ चमक आसमान में रात्रि  का भ्रम पैदा कर रही थी |

"बैठो....? " मनमोहन गुप्ता एक सोफा में लगभग पसर से गये,' बैठो , भाई !"

मै तनिक संकुचते  हुए उनसे थोडा फासला बनाते हुए हौले से बैठ गया | एक लड़का फ़ौरन पानी लेकर हाजिर हुआ | मैंने तुरंत पानी का गिलास लिया | में काफी देर से इसकी आवशकता महसुस कर रहा था |

"क्या पिओगे ? ' मनमोहन गुप्ता ने अलसाये स्वर में पूछा,"चाय ? कॉफ़ी ?"

"कॉफ़ी"  मैंने पानी पीकर खाली गिलास लड़के की तरफ बढाया, " बिना शक्कर की!"

उन्होंने लड़के की तरफ देखा | लड़के ने समज जाने वाली मुद्रा में सर हिलाया | और बाई तरफ स्थित दरवाजे से बाहर निकल गया |

मनमोहन गुप्ता ने मेरी तरफ देखा और हौले से मुस्कराये, "कविताओ में रूचि है तुम्हारी?"

'हाँ", मैंने सिर हिलाया |

"मैंने बहुत सी कविताए लिखी हैं..............." वो तनिक गंभीर स्वर में बोले|

'अनेक कवी सम्मेलनो  में शिरकत कर चूका हूँ | मेरे कविताओ के संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं !"

मैंने प्रसंशा और हैरानी  भरे निश्चित भाव से उनकी तरफ ताका |

"अब मेरी नई कविता के कुछ अंश सुनाता हु ! सुनोगे ?"

"'शोर !"  मै फ़ौरन बोला,"क्यों  नहीं !"

मनमोहन गुप्ता ने कुछ क्षण छत्त की तरफ ताका और फिर विशिष्ट अंदाज में बोले,' माँ  जो  नही तो कुछ भी नही,  बस माँ  से घर होता है | "

'वाह !' मैंने  दो-तीन बार ढोढी को छाती की तरफ झुकाया ,' माँ  से घर होता है !"

"सच मनो बेटा |" मनमोहन गुप्ता का स्वर भारी हो उठा, "जब जब दर्शन वाला शनिवार आता है, हमारा पुरे परिवार में जैसे उत्साह उमंग और हर्ष का समंदर लहराने लगता है | देवी माँ  के चरण जब से हमारे घर में पड़े हैं, हम तो धन्य हो गये है | हमारा पूरा परिवार अपने आपको भाग्यशाली समजता है देवी माँ जी की अनंत कृपा हम पर दिन रात बरसती रहती है ! हर पल हर घडी जैसे त्यौहार का सा माहौल बना रहता है ! रोजाना दूर दराज से अनेक माँ के दर्शन के पुजारी आते ही रहते हैं ! घर आये अतिथियों  की सेवा में घर के नौकर चाकर से लेकर सभी सदस्य बिड से जाते है | बाहर से आनेवाली संगत के आलावा भी यहा के बहुत से परिवार देवी माँ  के विशेष दर्शन को आते रहते हैं,  हर वक्त मेला सा लगा रहता हैं ! बहुत अच्छा लगता हैं |"

मैंने सिर हिलाया |

'कई बार -----' मनमोहन गुप्ता सामने घूरते हूए बोले , " देवी  माँ  जी बाहर चले जाते है ! अभी कुछ दिन पहेले दो महीने के लिये पंजाब गये थे, उससे पहेले London - Switzerland  आदि  को स्थानों पर अपने भक्तो को आशीर्वाद देने गये थे | जब देवी माँ यहाँ नही होते, तो यूँ  लगता है जैसे सारा संसार सुना सुना है | हलाकि घर में परिवार के सभी सदस्य होते है | नौकर, सेवादार, चौकीदार, वॉचमन, रोसाईये ------ वैसे के वैसे ही पुरे के पुरे - मगर ------"

उन्होंने एकदम खाये से स्वर में कहा 'मगर लगता है घर सुनसान है | कोई रोनक नही | कोई चहल-पहल नही | सभी लोग एक मशीन की तरह अपनी अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे होते हैं | सच पूछो तो दिल लगता ही नही | एक रुखी रुखी बैचनी जैसे हर वक्त घेरे  रहती है ! कोई धंदा सूझता ही नही | कुछ करने को ही नही | न खाने में मन लगता है न कही जाने पर ! और तो और सोना भी ठीक ढंग से नही होता ! समझ सकोगे मेरे फिलिंग को?"

में क्या बोलता ?

"इसलिये............."मनमोहन गुप्ता ने सर को तनिक नचाते हूए कहा, "मेरी नई कविता का शीर्षक है ...............माँ  से घर बनता है ! '

"बहुत सुन्दर |" मैंने ताली बजाने का उपक्रम किया,' अब समझ में आता है भाई साहब | जब ह्रदय में कोई उथल पुथल होती है तो नई कविता का सृजन होता है | क्या बात कही है | माँ  से घर बनता है |"
"माँ  जो  नही तो कुछ भी नही ....................

उन्होने हाथ अंदाज से लहराया, "माँ  जो   नही .............."

"माँ  जो  नही तो कुछ भी नही,
सूना सूना सब कुछ लगता,
इक खालीपन सा हर वक्त ही
उदास मन से उफनता है .......
माँ से घर बनता है |"


(निरंतर ...)

Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |

आप अगर अपने अनुभव,  'देवी माँ' के अपने साथ हुए चमत्कार को सबके साथ बाटना चाहते हैं,  तो हम आपके नाम और पते के साथ इसे पेश करेंगे | आप चाहेंगे तो नाम पता जाहिर नहीं करेंगे आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में 
Sanjeev Gupta
Email - sanjeev@globaladvertisers.in

Friday, August 19, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 15


Part 15
उसकी उम्र लगभग 55 साल होगी, कद थोडा ठिगना, चेहरा गोल, छोटे छोटे बाल | उसने हलके आसमानी कलर की हाफ बाजु की शर्ट और पेंट पहनी थी | 'देवी माँ' की दर्शनो  के लिए सीधीयों  में कतार के बीच वह खड़ा फर्श को घुर रहा था | मेरा ध्यान उसकी तरफ आकर्षित इसलिए हुआ क्योंकी वह अपने आप से बाते कर रहा था | कभी वह झुंझलाकर गर्दन हिलाने लगता, तो कभी एकदम मुस्कराने लगता, कभी गुस्से में दात भींच रहा था,  तो  कभी गंभीर मुद्रा में कुछ बड़बड़ाने लगता |

लगातार अपनी तरफ टकटकी लगाये देखता पाकर उसने झेपते से हुए दोनों जोड़कर धीरे से कहा "जय माता दी"|

"जय माता दी, साहेब|"  मैंने हँसा,  "आज कुछ खास उठापटक चल रही आपके भीतर ही भीतर | क्यों?"

"व़ो... यूँही..."  वहा झेपे मिटाने का प्रयास करते हुए जबरन  मुस्कुराया,  "और तुम सुनाओ | बैठ क्यूँ  गए ? थक गए हो ! अभी से ? जवान हूँ प्यारे ! उठो ! हिम्मत करो|"

"अरे नहीं भैई!" अपने पास पड़ी खाली जगह को थपथपाया,  "आप भी बैठो!  दर्शन शुरू नहीं हुए हैं शायद ! लाइन ज्यों की त्यों खड़ी हैं |"

वह, 'थैंक्यू'  बोलने वाले स्टाइल में होंटों को हिलाकर मेरी बगल में आहिस्ता से बैठे गया |

"क्या बाते कर रहे थे अपने आपसे?"  मैंने सहज स्वर मैं पुछा, "पहले अपना नाम बताइए |"

"मधुकर.... मधुकर नायर | मैं एक बैंक कर्मर्चारी था |.... हूँ |"

"था ?"  मैंने उसकी बात दोहराई "और हूँ !  इसका क्या मतलब हुआ?"

"मतलब तो देवी माँ जाने |" वहा भरे गले से बोला, "लेकिन मानना पड़ेगा | पूज्य राधे शक्ति माँ का नाम हैं बड़ा चमत्कारी |"

" जरा खुल कर बोलिए नायर साहब" मैंने उत्सुकता से पुछा, "आपने क्या चमत्कार देखा?

"मेरे दोस्त |" वहा एकाएक गंभीर हो उठा,  "मैंने पुरे तेतीस साल बैंक में नौकरी की हैं | कितने? 33 इयर | मामूली क्लर्क की पदवी पर लगा था | अपनी मेहनत से, लगन से,  ईमानदारी से काम करते - करते असिस्टंट ब्रांच मेनेजर  की सीट पर पंहुचा | लोग मेरी ईमानदारी की मिसाले देते.......... मेरी मेहनत और कार्यक्षमता पर पुरे स्टाफ को नाज था और फिर.........."

एक गहरी साँस लेने के बाद मधुकर नायर बोला, "मेरी अच्छी खासी जिंदगी को ग्रहण लग गया | किसी कर्मचारी ने बैंक में सत्ताएस लाख का घपला किया और इल्जाम मेरे सर पर आ गया...|  कितने का सताइएस लाख का|"

मैंने गंभीर मुद्रा में लगातार ध्यान से उसकी बात सुन रहा था |

"पहले सभी कर्मचारी से पूछताछ हुई | फिर इन्क्य्वारी चालू हो गयी |मुझे सस्पेंड कर दिया गया |

"यहाँ कब की बात हैं ? "  मैंने सहानभूति भरे स्वर में पुछा |

"लगभग सात वर्ष और पाच महीने हो गये,  मुझे  संस्पेंड हुए |" मधुकर नायर ने मेरी आँखों में झाँका, "मुझ  पर बेईमानी  का इल्जाम लगा | लोग मुझे  अजीब निगाहों से देखने लगे मेरे रुतबा,  मेरे इज्ज़त की धज्जिया उड़ गयी | शहर में कही आना जाना तक मुश्किल हो गया | यार दोस्तों ने पीठ दिखाई | रिश्तेदार सगेवाले मेरी बाते बनाने लगे | ... मतलब यह हैं मित्र मेरे,  मैं ज़माने भर मैं तमाशा बन गया | मेरी  हालत विक्षितों की सी  हो गई | खाना पीना हराम | ऊपर से मेरे ऊपर केस हो गया|  हप्ते महीने कोर्ट कचहरी का चक्कर |  वकीलों की फ़ीस | सब कुछ बंटाधार हो गया |"

मैंने उसकी हाथ को थपथपाकर धाडस  बंधाया |\

"मैं थक गया था | मैंने टूट गया था |  मेरा विश्वास,  मेरा धैर्य भी जवाब देने लगा था  |" मधुकर नायर ने भरे गले से कहा, "फिर, मैं एकबार यहाँ 'श्री राधे माँ' भवन मैं हो रही चौकी में आ गया | जब वक्ता लोगों ने 'श्री राधे शक्ति माँ'  की गुणगान बरवान किया, तो मैं भी दर्शन को चला गया | मैंने 'देवी माँ' के दरबार में अर्जी लगाइ,  फिर निरंतर सात चौकी भरी |"

"फिर...?" मैंने व्यग्र स्वर मैं पुछा |

"फिर... सातवी चौकी  के बाद ....." मधुकर नायर की आवाज में जोश आ गया, " एकाएक जैसे देवी माँ ने चमत्कार किया |  बैंक मैं की गई जालसाजी के असली गुनहगार पकड़ में आ गये | वे तीन जन थे | एक क्लर्क,  एक काशियर  और एक ग्राहक |  तीनो की शिनाख्त हो गयी | उन्होंने गुनाह कबुल कर लिया | अभी परसों .....परसों मैंने बैंक कर्मर्चारी था,  लेकिन कल मुझे फिर से अपनी सर्विस की बहाली का आर्डर मिल गया | मुझे अपने नौकरी पर फिर बुला लिया गया हैं |  बैंक ने लिखित रूप से मुझसे माफी मांगी है| इसी दौरान मुझे असिस्टंट से ब्रांच मेनेजर भी बना दिया गया हैं | मेरे भाई! इसलिए मैंने कहा मैं  बैंक कर्मर्चारी था, हूँ | यानि सोमवार से... आज 'देवी माँ' के दर्शन करूँगा | आशीर्वाद लूँगा |  कल तान कर सोऊंगा और फिर सोमवार से मधुकर नायर, ब्रांच मेनेजर की सीट संभालेगा |  मैं तो इसे सिर्फ 'देवी माँ' का चमत्कार मानता हूँ |  आपका क्या कहना हैं ?"

मैंने मुठी बंद कर हवा में लहराई " हंड्रेड  परसेंट 'देवी माँ' का चमत्कार |"

मधुकर नायर ने संतुष्टि से सीर हिलाया |
(निरंतर ...)


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Wednesday, August 17, 2011

'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 14




Part 14



आप कभी  परम श्रधेय 'श्री राधे शक्ति माँ' के, 'श्री राधे माँ भवन' गये हो, तो आपको बात दू मैं इस वक्त  सीढ़ीयो द्वारा उपरी मंजली की तरफ जाने वाले रस्ते में कोई आठ दस सीढियों के बाद,  लिफ्ट के ठीक लेफ्ट साइड में स्थित, विशाल विंडो की तनिक उमरी जगह पर,  उकड़ होकर बैठा हुआ था | यहाँ से ग्राउंड फ्लोर  स्तिथ विशाल हॉल में अच्छी तरह झाँका जा सकता हैं | पहली मंजिल की तरफ जाने वाली लगभग सात-आठ सीढियों पर खड़े माता के पूजारियो को भी देखा जा सकता हैं |

मेरे पास बैठे बुजुर्ग सेवादार ने उठते हुए मुझसे कहा "लाइन में लग जाओ, पांच माला स्थित गुफा तक पहुँचने में तुम्हे पूरा एक घंटा लग जायेगा | इससे  ज्यादा भी लग सकता हैं |"

"कोई बात नहीं प्रभु|"  मैंने बेफिकीर से हाथ हिलाया,  "अब जब आ ही गये हैं तो देवी माँ का आशीर्वाद लेकर ही जायेगे | एक घंटा बाद ही सही! दो घंटा बाद भी चलेगा|"

जैसे ही सेवादार उठा एक अन्य बुजुर्ग जिनकी उम्र सत्तर से ऊपर ही होगी, आहिस्ता  से मेरे बगल में बैठ गये | उनके हाथ में एक चॉकलेट का बड़ा सा डिब्बा था | मुझे डिब्बे की तरफ तकते देख कर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, " देवी माँ के लिए है | उन्हें चॉकलेट बहोत पसंद है |

"गुड" मैंने तनिक सरक कर उन्हें आराम से बैठने का इशारा किया |

"मैं जब भी आता हूँ........." वह आत्मविभोर स्वर में बोले, "देवी माँ के लिए चॉकलेट ही लाता हूँ | मैंने जब जब भी 'देवी माँ' के दर्शन किये,  मुझे वो एक छोटी सी कंजक  के रूप में दिखाई दी | मैं जैसे ही गुफा में प्रवेश करता हूँ  मुझे  ऐसा  लगता हैं,  जैसे वो मेरी ही प्रतीक्षा कर रही हो | एकदम बच्चो  जैसा मुस्कुराहट  उनके अधेरो पर खेलने लगते हैं | बच्चो जैसी ही उतावली मुद्रा में वो हाथ बढाकर मुझसे चॉकलेट मांगती हैं......................." उनका गला  भर आया |

एक क्षण रुकने के बाद वह पुलकित स्वर मैं बोले, "जैसे ही 'देवी माँ' चॉकलेट लेती हैं | मेरे मन में एक असीम आनंद भर उठाता हैं |"

मैंने उनकी आखों में छलक उठने को आतुर पानी देखा |

"मेरा नाम सत्य प्रकाश हैं| .......सत्यप्रकाश गर्ग ..." वह अपने आप में खोये से धीर धीरे बोल रहे थे | "घर में 'देवी माँ'  की कृपा से दिया सब कुछ हैं | मैं तो पंद्रह रोज का बेसब्री से इंतजार करता हूँ,  की कब 'देवी माँ' के दर्शनों का दिन आये | .........तुमने देवी माँ से कभी  कुछ माँगा ?"

मैंने इन्कार में सीर हिलाया |

"माँगना भी मत",  वह गंभीर मुद्रा बनाकर बोले, " देवी माँ  अंतर्यामी हैं | अच्छा बताओ तुमने 'देवी माँ' के किस रूप में दर्शन किये हैं?"

मैं कुछ बोलू उससे पहले ही वह स्वतः बोलने लगे, "पहले तो यहाँ जान लो की आखिर 'देवी माँ' क्या हैं? कोई संत? कोई अवतार? कोई ऋषि ज्ञानी?"

 मैंने अनिश्चित भाव से सीर हीलाया, " आखिर 'देवी माँ' हैं क्या?"  वह एक एक शब्द पर जोर देते हुए बोले, "सुनो बेटा, 'देवी माँ' के बारे में अपनी कोई  भी राय निश्चित करने से पहले,  उनके बारेमें अच्छी तरह जानना जरुरी हैं| देश - विदेश में उनके लाखो अनुयायी हैं | अब यही देख लो | हजारो की संख्या में हाजिर लोगो को गौर से देखो | इनमे टी वि आर्टिस्ट है, वकील है, डॉक्टर है, बड़े बड़े उद्योगपति है, छोटे-छोटे हाथ ठेला लगाने वाले भक्त हैं | साधू समाज के लोग, सरकारी तंत्र के लोग, बड़े-बुड्ढे, बच्चे-जवान............. न जाने कहाँ कहाँ से आ रहे हैं| इनको किसी ने निमंत्रण भेजा हैं क्या?  या इनको फोर्स किया हैं,  की यह तुमने आना ही है?  नहीं ! नहीं ! कुछ तो है,  की इन सबके दिलो  में . 'देवी माँ' के दर्शनों की इतनी लालसा है, की भारी बारिश में भी लोगो का हुजूम  दर्शनों  के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा हैं | सुनो मेरे बच्चे ! यहा साहूकारी नहीं चलेगी | यहा पद और आहोदा नहीं चलेगा | यहा रुतबा  दिखाने  की जरूरत नहीं|"

वह एक क्षण के लिए रुके, जीभ फिराकर अपने होंटों को तनिक गिला करने के बाद वह बोले, "यहा अगर आना है,  तो दीन बनकर आओ | सवाली बन कर आओ | झुकना सिख कर आओ, विश्वास की ज्योत मन में जगाकर आओ | आशा की डोर थामकर आओ | कुछ पाने की इच्छा लिये आओ | मन की अशुधि और अहंकार को घर पर छोड़कर आओ | तब तुम्हे मालूम होगा की 'देवी माँ' किस बात पर रिझंती शक्ति है | याद रखना,  यहा भूलकर भी किन्तु के भाव लेकर मत आना टाइम ख़राब करोगे | अगर कोई अपने आपको धुरंदर समझे  और सोचे की मैं 'देवी माँ' की परीक्षा लू | तो यह उसकी भूल होगी | 'देवी माँ'  परीक्षा देती नहीं,  परीक्षा लेती है !"

(निरंतर...)

Note - प्रिय 'देवी माँ' के भक्तो 'माँ की लीलाए' हम निरंतर शृंखलाबंध प्रस्तारित कर रहे हैं | इसमें हमने 'देवी माँ' के सानिध्य में आने वाले भक्तों के अनुभव को कलमबदध किया हैं | 'माँ की लीलाये' आप को कैसी लगी रही हैं इस बारे मैं आप अपनी राय, अपनी समीक्षा, अपना सुझाव हमें निम्न इ-मेल पर भेज सकते हैं |

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'Radhe Guru Maa' ki Leelaye - Part 13

Part 13

मैं अभी छोटी माँ और टल्ली बाबा यानि गौरव कुमारजी के बारे में सोच रहा था की दर्शन करने वाली संगत ऊपर की और बढ़नी शुरू हो गयी और वे दोनों महिलाये मोड़ मुड़ने के बाद दृष्टि से ओंज़ल हो गई |

 तभी डार्क- ग्रे कलर का सफ़र सूट पहने, सर पर लाल रुमाल बंधे, लगभग ६०-६२ वर्षीय एक सेवादार मेरी बगल में आकर उकड़ बैठ गया . उसने दोनों हाथो से अपनी पिंडलिया दबाने का उपरक करते हुए मेरे तरफ एक फीकी मुस्कान के साथ देखा |

"लगता है थक गए हो अंकल !" मैंने हाथ आगे बढ़ाये, "में पाँव दबा दू?"

"अरे नहीं यार !" उसने मेरी कालिया थमते हुए कहा, " में तो बस यूँ ही तुम्हे बैठे देख यहाँ आ गया .. दर्शन के लिए उपदर क्यों नहीं जा रहे हो?"

"वो क्या है ना अंकल!" मैंने ठोढ़ी खुजलाते हुए कहा, "थोड़ी भीड़ कम हो जाये तो खुले दर्शन करना चाहता हूँ | साथ में माता की चौकी का आनंद भी ले रहा हूँ | आप कब से सेवा कर रहे हो?"

"याद नहीं...." वह सोचने लगे, "शायद पांच साल से ... छह  भी हो गये होंगे|

"अंकल" मैंने उनके निकट सरकते हुए तनिक धीमे स्वर में पुछा, "मेरी कुछ पर्सनल समस्या है. दो 'माँ की भक्त' यहाँ आपस में छोटी माँ के बारे में चर्चा कर रही थी... आप थोडा विस्तार में  बता सकते है 'छोटी माँ' के बारे में?"
"देखो बेटे" वह आत्मीय स्वर में बोले, "निचे लगे किसी भी होअर्डिंग पर आपको टल्ली बाबा यानि गौरव कुमार का मोबाइल नंबर मिल जायेगा | तुम गौरव कुमार से मुलाकात का समय मांग लो. 'छोटी माँ' परम श्रधेय पूज्य राधे माँ का ही एक स्वरुप है | आपको यहाँ या तो सुबह 6 बहे तक या फिर शाम को 6 -7 बजे .. जो भी टाइम आपको मिले, आना  है | 'छोटी माँ' का आसन एक अलग कमरे में लगता है. वह सिवाय 'छोटी माँ' के दूसरा कोई भी नहीं होता | आप जो भी पूछना चाहे, वह बात आप 'छोटी माँ' से कहिये. खुल कर कहिये, तुम्हरे द्वारा कही बात या तुम्हारा परिचय अगर आप छाए तो एकदम गोपनीय रहेगा | यानि की आप की तकलीफ  को 'छोटी माँ' सुनेगी | गौर से सुनेगी | और तुम यकीं करो, काफी हाड तक तो 'छोटी माँ' ही तुम्हारी समस्या का निवारण कर देगी | उसके बाद भी तुम्हारे बार 'देवी माँ' तक पहुचेगी |"

"यह 'छोटी माँ' के वचन कब कब होते है?" मैंने जिज्ञासा भरे स्वर में पुछा |

"यह तो संगत पर निर्भर है... " वह कंधे  उचका कर बोला, "अगर संगत की संक्या अधिक रहती है तो हफ्ते में दो बार, नहीं तो एक बार तो निश्चित है ही |"

" .. 'छोटी माँ'.. कुछ प्रवचन या सत्संग करती है?" मैंने तनिक गर्दन को तिरछा किया |

" 'छोटी माँ' प्रत्येक आये हुए भक्त की बात सुनती है |"  वह थोडा तरंतुम भरे स्वर में बोला,  " देखो बच्चे | आज जिसे देखो, वह अंदर ही अंदर किसी न किसी बात से परेशां है | किसी की परेशानी बड़ी है तो किसी की छोटी | बेटा, चेहरे पर मत जाना | हर खिला हुआ, चमकता हुआ चेहरा दिखने में तो यूँ लगेगा की यार इस आदमी के जैसा सुखी और खुशहाल शायद कोई नह है | मगर अंदर के किसी कोने में कही न कही एक टीस, एक गम, एक निराशा उसे निरंतर कचोटती रहती है | बेटा ! एक बात और ज़िन्दगी में एक बात अपने दिमाग में कील की तरह गाडलो | अपने दुःख, अपनी तकलीफ, कभी अपने लगने वाले लोग, को मत बताना | अपने रिश्तोदारो सगेवाले, को तो हरगिज़ नहीं बताना |सुनो, ये दुनिया ऐसी है बेटा | तुम्हारा कोई कितना भी नजदीकी क्यों न हो, 70 % लोगो को आपकी तकलीफ से कुछ लेना देना नहीं होता | बाकि बजे 30 % आपकी तकलीफ सुनकर ऊपर से सहानभूति जताएंगे मगर भीतर ही भीतर पुलकित होंगे की ठीक हुआ, इसके साथ ऐसा ही होना चाहिए था |
में मंत्रमुग्ध उसका चेहरा तक रहा था |

"अपनी 'छोटी माँ' से कहो |" वह पुरजोर शब्दों में बोला, " ..'छोटी माँ'  न केवल आपकी तकलीफ को गौर से सुनेगी बल्कि उसके निवारण का रास्ता भी बतायेंगी | और फिर जब आपकी बात 'छोटी माँ' तक पहुँच गयी, समझो 'देवी माँ' तक पहुँच गयी |"

"फिर उसके बाद.............. "  मैंने उसकी आखों में झाँका |

"एक तारा बोले... " वह जोर से  हँसा, " फिर उसके बाद 'देवी माँ' जाने भाई | और जब 'देवी माँ' पर विश्वास है.. भरोसा है.. तो बाकि क्या रह गया ? मौजा ही मौजा |"

वह टल्ली बजने लगा |

(निरंतर .... )

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